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*भक्त वत्सल भगवान *

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दैत्य राज हिरण्यकषिपु अपने विशाल सभागार में चिंता मग्न बैठा था ।चौड़े विकराल मस्तक पर चिंता की गहरी लकीरें थी । काले मजबूत हाथों से बनी मुठ्ठीयोँ से वह बार बार अपने कठोर वज्रासन पर प्रहार कर रहा था ...