उम्र के उस पड़ाव पर हूँ जहाँ अनुभवों के अलावा जीवन में कोई आकांक्षा, इच्छा नहीं रहती।जब मन कुछ भटकने लगता है, कुछ ढूंढने लगता है तो शब्दों का सहारा लेना ही उचित लगता है।
मैंने संस्कृत में Ph D की है लेकिन नाम के साथ Dr नहीं लगाया। शादी के 30 साल बाद प्रतिलिपि के मंच पर जब लिखने का प्रयास किया तो लेखन के शैशव काल मे डिग्री का नाम देना कुछ अटपटा सा लगा। भाव और विचार आने ही क्षीण हो गए थे।
प्रतिलिपि के एक से एक अच्छे लेखकों को पढ़ कर उनके बीच अपना अस्तित्व बनाये रखने की जद्दोजहद करती हूँ ।सफलता या असफलता आप की समीक्षा पर आधारित होती है।
आप लोगों से जुड़ कर लगा कि लेखकों के इस विस्तृत समूह को अपनी शिक्षा से परिचित तो करा ही सकती हूँ।
प्रतिलपी के मित्रों के सहयोग से मेरा मार्गदर्शन होता रहे इसी कामना के साथ आप सभी का अभिनन्दन करती हूँ।
प्रतिलिपि के कुछ स्नेहिल पाठकों और लेखिका वीनू आहूजा जी ने मुझसे अनुरोध किया कि मैं अपने नाम के आगे डॉ लगाऊँ। इसलिये आज उनकी इच्छा रखते हुए मैंने अपनी प्रोफाइल में नाम डॉ रेनु सिंह कर दिया है।
रिपोर्ट की समस्या
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