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भगवान ने आपको चुना हैं

4.8
1614

उस दिन सबेरे 6 बजे मैं अपने शहर से दूसरे शहर जाने के लिए निकला, मैं रेलवे स्टेशन पहुचा, पर देरी से पहुचने कारण मेरी ट्रेन निकल चुकी थी, मेरे पास 9.30 की ट्रेन के आलावा कोई चारा नही था मैंने सोचा कही ...

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लेखक के बारे में
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Deepak SINGLA

पेशे से वकील लेकिन दिल से कलाकार

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    राहुल (देव)
    22 अगस्त 2018
    दीपक जी... बहुत अच्छी रचना है आपकी ये... परंतु कई बार, कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो हमसे पैसे तो लेते हैं खाने के नाम पे, लेकिन उसका उपयोग गलत कामों में करते हैं। उचित यह होगा कि उन्हें, कोई खाने का सामान दें, और उसका wrapper फाड़ दें, ताकि वो वापस से उसे उसी दुकान पे काम रेट में न बेच पाए, और उसका उपभोग ही करें...
  • author
    विवेक गर्ग
    02 सितम्बर 2018
    वाकई हम तो एक जरिया ही है। करता तो सब वो ही है।
  • author
    Sunita Thakur
    20 नवम्बर 2018
    bhut hi khubsurat rachna
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    राहुल (देव)
    22 अगस्त 2018
    दीपक जी... बहुत अच्छी रचना है आपकी ये... परंतु कई बार, कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो हमसे पैसे तो लेते हैं खाने के नाम पे, लेकिन उसका उपयोग गलत कामों में करते हैं। उचित यह होगा कि उन्हें, कोई खाने का सामान दें, और उसका wrapper फाड़ दें, ताकि वो वापस से उसे उसी दुकान पे काम रेट में न बेच पाए, और उसका उपभोग ही करें...
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    विवेक गर्ग
    02 सितम्बर 2018
    वाकई हम तो एक जरिया ही है। करता तो सब वो ही है।
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    Sunita Thakur
    20 नवम्बर 2018
    bhut hi khubsurat rachna