मैं नास्तिक क्यों हूँ? [यह लेख भगत सिंह ने जेल में रहते हुए लिखा था और यह 27 सितम्बर 1931 को लाहौर के अखबार “ द पीपल “ में प्रकाशित हुआ । इस लेख में भगतसिंह ने ईश्वर कि उपस्थिति पर अनेक तर्कपूर्ण ...
बहुत ही सटीक एवं अभ्यासपूर्ण विश्लेषण है यह| मैं स्वयं एक नास्तिक हूँ और भगत सिंह ने कही हर एक बात से मैं इत्तेफाक रखता हूँ. ऐसी बातें कहने के लिए, जिगरा चाहिए|मेरे विचार में एक और चीज़ भगत सिंह अपने निबंध में जोड़ सकते थे, और वह है "व्यक्तिपुजा का निषेध"| मनुष्य कभी उम्र के आधार पर किसी आदर का पात्र नहीं होना चाहिए, ऐसा मेरा मानना है|
भगत सिंह को शत शत प्रणाम करने वाले मेरे मित्र भगत सिंह को समझे ही नहीं ऐसा मुझे लगता है|उनको प्रणाम कर के आपने उनके आत्मा और मरणोपरांत जीवन का खंडन करने का विचार साझा नहीं किया ऐसा मुझे लगता है| यदि आपको भगत सिंह के विचारों के प्रति अपनी स्वीकार्यता ज़ाहिर करनी है तो प्रत्येक विचार को आलोचनात्मक भाव से देखें, जांच परख कर उससे रूबरु हो जाइए और अंत तक उसे निभाइए, इसलिए कि आपको उसमें विश्वास है, और वह आपने पूर्ण विचार के उपरांत ही सुनिश्चित किया है|
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इससे पत्ता चलता हैं कि भगत सिंह समाज से कही ऊपर उठ कर सोचते थे ।
उन्होंने जिंदगी के हर पहलू को विचार-विमर्श से समझा और इंसानो की हैवानियत को परखा ।
इस महान क्रन्तिकारी जो 1 विज्ञानिक भी कहा जा सकता हैं को
हजारो बार प्रणाम,,,,,,,,,,
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भगत सिंह हर चीज को व्यवहारिक तौर पर जोड़कर देखते थे ना की लकीर का फकीर बने रहते थे शायद यही कारण था कि वह अंग्रेजों की असली मनसा को समझ चुके थे और उन्हें भगाने के लिए अपनी जान देने से भी पीछे नहीं रहे जबकि दूसरे तरफ अन्य भारतीय इसे ईश्वर की कृपा मानकर हाथ पर हाथ रखे बैठे हुए थे शायद यही कारण है कि भारत सबसे ज्यादा गुलामी सहने वाले देशों में से है क्योंकि इस देश में दुनिया में सबसे अधिक देवी देवता और अंधविश्वासी लोग हैं
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बहुत ही सटीक एवं अभ्यासपूर्ण विश्लेषण है यह| मैं स्वयं एक नास्तिक हूँ और भगत सिंह ने कही हर एक बात से मैं इत्तेफाक रखता हूँ. ऐसी बातें कहने के लिए, जिगरा चाहिए|मेरे विचार में एक और चीज़ भगत सिंह अपने निबंध में जोड़ सकते थे, और वह है "व्यक्तिपुजा का निषेध"| मनुष्य कभी उम्र के आधार पर किसी आदर का पात्र नहीं होना चाहिए, ऐसा मेरा मानना है|
भगत सिंह को शत शत प्रणाम करने वाले मेरे मित्र भगत सिंह को समझे ही नहीं ऐसा मुझे लगता है|उनको प्रणाम कर के आपने उनके आत्मा और मरणोपरांत जीवन का खंडन करने का विचार साझा नहीं किया ऐसा मुझे लगता है| यदि आपको भगत सिंह के विचारों के प्रति अपनी स्वीकार्यता ज़ाहिर करनी है तो प्रत्येक विचार को आलोचनात्मक भाव से देखें, जांच परख कर उससे रूबरु हो जाइए और अंत तक उसे निभाइए, इसलिए कि आपको उसमें विश्वास है, और वह आपने पूर्ण विचार के उपरांत ही सुनिश्चित किया है|
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