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भगतसिंह (1931) मैं नास्तिक क्यों हूँ?

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5364

मैं नास्तिक क्यों हूँ? [यह लेख भगत सिंह ने जेल में रहते हुए लिखा था और यह 27 सितम्बर 1931 को लाहौर के अखबार “ द पीपल “ में प्रकाशित हुआ । इस लेख में भगतसिंह ने ईश्वर कि उपस्थिति पर अनेक तर्कपूर्ण ...

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भगत सिंह
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  • author
    Sangharsh
    02 ਨਵੰਬਰ 2018
    बहुत ही सटीक एवं अभ्यासपूर्ण विश्लेषण है यह| मैं स्वयं एक नास्तिक हूँ और भगत सिंह ने कही हर एक बात से मैं इत्तेफाक रखता हूँ. ऐसी बातें कहने के लिए, जिगरा चाहिए|मेरे विचार में एक और चीज़ भगत सिंह अपने निबंध में जोड़ सकते थे, और वह है "व्यक्तिपुजा का निषेध"| मनुष्य कभी उम्र के आधार पर किसी आदर का पात्र नहीं होना चाहिए, ऐसा मेरा मानना है| भगत सिंह को शत शत प्रणाम करने वाले मेरे मित्र भगत सिंह को समझे ही नहीं ऐसा मुझे लगता है|उनको प्रणाम कर के आपने उनके आत्मा और मरणोपरांत जीवन का खंडन करने का विचार साझा नहीं किया ऐसा मुझे लगता है| यदि आपको भगत सिंह के विचारों के प्रति अपनी स्वीकार्यता ज़ाहिर करनी है तो प्रत्येक विचार को आलोचनात्मक भाव से देखें, जांच परख कर उससे रूबरु हो जाइए और अंत तक उसे निभाइए, इसलिए कि आपको उसमें विश्वास है, और वह आपने पूर्ण विचार के उपरांत ही सुनिश्चित किया है|
  • author
    Anuj Dhillon
    24 ਜੂਨ 2018
    इससे पत्ता चलता हैं कि भगत सिंह समाज से कही ऊपर उठ कर सोचते थे । उन्होंने जिंदगी के हर पहलू को विचार-विमर्श से समझा और इंसानो की हैवानियत को परखा । इस महान क्रन्तिकारी जो 1 विज्ञानिक भी कहा जा सकता हैं को हजारो बार प्रणाम,,,,,,,,,,
  • author
    sheshmuni singh
    09 ਫਰਵਰੀ 2019
    भगत सिंह हर चीज को व्यवहारिक तौर पर जोड़कर देखते थे ना की लकीर का फकीर बने रहते थे शायद यही कारण था कि वह अंग्रेजों की असली मनसा को समझ चुके थे और उन्हें भगाने के लिए अपनी जान देने से भी पीछे नहीं रहे जबकि दूसरे तरफ अन्य भारतीय इसे ईश्वर की कृपा मानकर हाथ पर हाथ रखे बैठे हुए थे शायद यही कारण है कि भारत सबसे ज्यादा गुलामी सहने वाले देशों में से है क्योंकि इस देश में दुनिया में सबसे अधिक देवी देवता और अंधविश्वासी लोग हैं
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    Sangharsh
    02 ਨਵੰਬਰ 2018
    बहुत ही सटीक एवं अभ्यासपूर्ण विश्लेषण है यह| मैं स्वयं एक नास्तिक हूँ और भगत सिंह ने कही हर एक बात से मैं इत्तेफाक रखता हूँ. ऐसी बातें कहने के लिए, जिगरा चाहिए|मेरे विचार में एक और चीज़ भगत सिंह अपने निबंध में जोड़ सकते थे, और वह है "व्यक्तिपुजा का निषेध"| मनुष्य कभी उम्र के आधार पर किसी आदर का पात्र नहीं होना चाहिए, ऐसा मेरा मानना है| भगत सिंह को शत शत प्रणाम करने वाले मेरे मित्र भगत सिंह को समझे ही नहीं ऐसा मुझे लगता है|उनको प्रणाम कर के आपने उनके आत्मा और मरणोपरांत जीवन का खंडन करने का विचार साझा नहीं किया ऐसा मुझे लगता है| यदि आपको भगत सिंह के विचारों के प्रति अपनी स्वीकार्यता ज़ाहिर करनी है तो प्रत्येक विचार को आलोचनात्मक भाव से देखें, जांच परख कर उससे रूबरु हो जाइए और अंत तक उसे निभाइए, इसलिए कि आपको उसमें विश्वास है, और वह आपने पूर्ण विचार के उपरांत ही सुनिश्चित किया है|
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    Anuj Dhillon
    24 ਜੂਨ 2018
    इससे पत्ता चलता हैं कि भगत सिंह समाज से कही ऊपर उठ कर सोचते थे । उन्होंने जिंदगी के हर पहलू को विचार-विमर्श से समझा और इंसानो की हैवानियत को परखा । इस महान क्रन्तिकारी जो 1 विज्ञानिक भी कहा जा सकता हैं को हजारो बार प्रणाम,,,,,,,,,,
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    sheshmuni singh
    09 ਫਰਵਰੀ 2019
    भगत सिंह हर चीज को व्यवहारिक तौर पर जोड़कर देखते थे ना की लकीर का फकीर बने रहते थे शायद यही कारण था कि वह अंग्रेजों की असली मनसा को समझ चुके थे और उन्हें भगाने के लिए अपनी जान देने से भी पीछे नहीं रहे जबकि दूसरे तरफ अन्य भारतीय इसे ईश्वर की कृपा मानकर हाथ पर हाथ रखे बैठे हुए थे शायद यही कारण है कि भारत सबसे ज्यादा गुलामी सहने वाले देशों में से है क्योंकि इस देश में दुनिया में सबसे अधिक देवी देवता और अंधविश्वासी लोग हैं