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बेटियां

4.6
6459

ट्रेन चलनी शुरू हुई। बर्थ पर बैठा यात्री फोन पर ज़रूरी बात करता रहा ।वो बात खत्म करना चाहता पर बार बार उसके सिग्नल कट जाते । करीब दस मिनट तक हम दुबके सामान पकड़े बैठे रहे। फोन खत्म करके बड़ी शालीनता से ...

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लेखक के बारे में

स्त्रियों का जीवन सम्वेदनशीलता को प्राधान्य देता है समाज में मेरे इर्द गिर्द की औरतों में कहानियाँ ढूंढ लेती हूँ। जन्म स्थल झांसी सम्प्रति नागपुर से

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    satyawati maurya
    25 फ़रवरी 2019
    बहुत मार्मिक ,पर अपने देश में भी क्या वे सुरक्षित हैं ?
  • author
    मनमोहन कौशिक
    27 मार्च 2019
    असुरक्षा यहां भी बढ़ती जा रही है।दलगत राजनीति जो न करा दे।
  • author
    Reena Chouhan
    23 जुलाई 2020
    baat to sach h jnab Agr sidha puccha jaye en pakistniyo se to bilkul ham acche rah rhe h kahke taaldete h
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    satyawati maurya
    25 फ़रवरी 2019
    बहुत मार्मिक ,पर अपने देश में भी क्या वे सुरक्षित हैं ?
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    मनमोहन कौशिक
    27 मार्च 2019
    असुरक्षा यहां भी बढ़ती जा रही है।दलगत राजनीति जो न करा दे।
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    Reena Chouhan
    23 जुलाई 2020
    baat to sach h jnab Agr sidha puccha jaye en pakistniyo se to bilkul ham acche rah rhe h kahke taaldete h