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बेटी

4.4
841

कुछ बह जाते है आंसू बनकर , कुछ ठहर कर पलकों के कोनो में गुजारिश थम जाने की करते है, ये वो सपने है बेटियों के जिन्हे अपने ही तोड़ दिया करते हैं घोट कर दम वो अपनी ही इच्छाओं का, मुस्कुरा कर दिल सबका ...

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लेखक के बारे में

विनम्र बाला मैं , जलती ज्वाला भी ... संघर्ष का पर्याय मैं , समर्पण की गाथा भी ..!!

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    sagar singh
    21 अगस्त 2018
    jitni taarif ki jaay utni kam
  • author
    कुमार अभिनंदन
    09 जनवरी 2019
    बहुत अच्छे...
  • author
    Sikandar Vadia
    01 अक्टूबर 2018
    tarif ke kabil
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    sagar singh
    21 अगस्त 2018
    jitni taarif ki jaay utni kam
  • author
    कुमार अभिनंदन
    09 जनवरी 2019
    बहुत अच्छे...
  • author
    Sikandar Vadia
    01 अक्टूबर 2018
    tarif ke kabil