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बेटे सोहम को पत्र

4.9
1679

प्रिय सोहम, आज आणंद ज़िले के वल्लभ विद्यानगर स्थित एन. वी. पटेल कोलेज के हॉस्टल में छोड़ते हुए मैंने तुम्हें कितनी सलाहें दी क्योंकि यह पहला अवसर था जब तुम्हें परिवार से दूर अकेले रहना था। तुम्हें ...

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लेखक के बारे में

संक्षिप्त परिचय नाम : मल्लिका मुखर्जी जन्मस्थान : चंदननगर (पश्चिम बंगाल) जन्मतिथि : 23 अक्टूबर, 1956 माता : रेखा भौमिक पिता : क्षितीशचंद्र भौमिक शिक्षा : एम. ए. (अर्थशास्त्र) भाषा ज्ञान : हिन्दी, अंग्रेजी, गुजराती, बांग्ला संप्रति : वरिष्ठ लेखा परीक्षा अधिकारी, कार्यालय प्रधान निदेशक लेखापरीक्षा (केन्द्रीय), गुजरात, ऑडिट भवन, नवरंगपुरा, अहमदाबाद-380009. लेखन विधाएँ : कविता, गीत, कहानी, ग़ज़ल, निबन्ध, लेख साहित्यिक उपलब्धियाँ : प्रकाशित हिन्दी काव्य-संग्रह- ‘मौन मिलन के छन्द’ (2010), ‘एक बार फिर’ (2015) अनुवाद कार्य - वर्ष 2016 में प्रकाशित, माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के गुजराती काव्य-संग्रह ‘आँख आ धन्य छे’ का बांग्ला काव्यानुवाद ‘नयन जे धन्य’ डॉ. अंजना संधीर के परिचयात्मक हिन्दी काव्य-संकलन ‘स्वर्ण आभा गुजरात’ में, गुजरात में बसी एक सौ कवयित्रियों में स्थान प्राप्त

समीक्षा
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  • author
    Soham Mukherjee
    04 മെയ്‌ 2016
    कितने कवियों, साहित्यकारों ने माँ के लिए न जाने कितना लिखा होगा। पर मेरी मम्मा ने मुझे जो पत्र लिखा वह बेमिसाल है। कभी-कभी हमें इस बात का अहसास नहीं होता की माता-पिता अपने संतान की खुशियों की खातिर अपनी खुशियों की कैसे बलि चढ़ा देते हैं। माँ का प्यार ही जीवन का पहला प्यार होता है जो जीवनभर उपलब्ध होता है। ये प्यार हर बच्चे के लिए अनमोल उपहार है। आज की कामकाजी महिलाएं दोहरी जम्मेदारी निभाती हैं, मेरी मम्मा ने भी दोहरी जिम्मेंदारी निभाते हुए परिवार के प्रति यथासंभव अपना दायित्व निभाया. पापा के प्यार ने हमेशा मुझे एक सुरक्षा की भावना प्रदान की। मेरे माता-पिता ही मेरे प्रथम गुरु है जिन्होंने मेरे हर कार्य में सकारात्मक सहयोग दिया।
  • author
    Surendra Verma
    29 ഏപ്രില്‍ 2016
    आदरणीय मल्लीकाजी, पत्र लेखन एक खूबसूरत कला है, इस बात का बखूबी परिचय आपके इस तत्र से मिलता है। एक माँ बेहद ईमानदारी के साथ अपने बेटे से वह सब बातें share कर रही है जो बेटे के जन्म से लेकर उसके होस्टल में जाने के वक्त तक नही कही गई थी। पत्र को 24 कैरेट के सोने जैसी पवित्रता के साथ साथ घटनाओं की माला के वर्णन को भी ह्रदय से तराशा गया है। Working couples and middle class परिवारों को किन किन कठनाइयों का सामना करना पड़ता है, पत्र में यह सब पढ़ कर इन परिस्तिथियों से गुजरने वाले हम जैसे पाठक की आँखे नम होने से रुक न पाई। इस बेहद सुंदर रचना के लिए आपको बधाई हो।
  • author
    Sarla Sukhramani
    22 മെയ്‌ 2016
    Kala swayambhu hai.Yeh harek m nahi hoti.Aap k iss patr se,patr lekhan ki khub surat kala ka parichay miltajulta hai. Behad umda. Maa ke mann ke sabhi bhavon ka darshan iss patr dwara ho raha hai.kaamkaji Mahila hone k baju bhi dohri jimmedari nibhai hai aur iss baat ko,Soham bete ko hostel Jane k baad patr dwara bataya,yeh sab kathinaiya padhkar pathako ki aankho se ganga karna tik nahi paai,sachi bhi Mallika , sunder VA hraday sparsh rachna k liye khub khub badai.
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    Soham Mukherjee
    04 മെയ്‌ 2016
    कितने कवियों, साहित्यकारों ने माँ के लिए न जाने कितना लिखा होगा। पर मेरी मम्मा ने मुझे जो पत्र लिखा वह बेमिसाल है। कभी-कभी हमें इस बात का अहसास नहीं होता की माता-पिता अपने संतान की खुशियों की खातिर अपनी खुशियों की कैसे बलि चढ़ा देते हैं। माँ का प्यार ही जीवन का पहला प्यार होता है जो जीवनभर उपलब्ध होता है। ये प्यार हर बच्चे के लिए अनमोल उपहार है। आज की कामकाजी महिलाएं दोहरी जम्मेदारी निभाती हैं, मेरी मम्मा ने भी दोहरी जिम्मेंदारी निभाते हुए परिवार के प्रति यथासंभव अपना दायित्व निभाया. पापा के प्यार ने हमेशा मुझे एक सुरक्षा की भावना प्रदान की। मेरे माता-पिता ही मेरे प्रथम गुरु है जिन्होंने मेरे हर कार्य में सकारात्मक सहयोग दिया।
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    Surendra Verma
    29 ഏപ്രില്‍ 2016
    आदरणीय मल्लीकाजी, पत्र लेखन एक खूबसूरत कला है, इस बात का बखूबी परिचय आपके इस तत्र से मिलता है। एक माँ बेहद ईमानदारी के साथ अपने बेटे से वह सब बातें share कर रही है जो बेटे के जन्म से लेकर उसके होस्टल में जाने के वक्त तक नही कही गई थी। पत्र को 24 कैरेट के सोने जैसी पवित्रता के साथ साथ घटनाओं की माला के वर्णन को भी ह्रदय से तराशा गया है। Working couples and middle class परिवारों को किन किन कठनाइयों का सामना करना पड़ता है, पत्र में यह सब पढ़ कर इन परिस्तिथियों से गुजरने वाले हम जैसे पाठक की आँखे नम होने से रुक न पाई। इस बेहद सुंदर रचना के लिए आपको बधाई हो।
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    Sarla Sukhramani
    22 മെയ്‌ 2016
    Kala swayambhu hai.Yeh harek m nahi hoti.Aap k iss patr se,patr lekhan ki khub surat kala ka parichay miltajulta hai. Behad umda. Maa ke mann ke sabhi bhavon ka darshan iss patr dwara ho raha hai.kaamkaji Mahila hone k baju bhi dohri jimmedari nibhai hai aur iss baat ko,Soham bete ko hostel Jane k baad patr dwara bataya,yeh sab kathinaiya padhkar pathako ki aankho se ganga karna tik nahi paai,sachi bhi Mallika , sunder VA hraday sparsh rachna k liye khub khub badai.