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बेरोजगारी चरम सीमा पर

4.7
36

खिड़की से आती एक पतली उग्र किरण नीलेश को बिस्तर से उठने को मजबुर कर रही थी , दिन भर शहर में नौकरी के लिए दर दर भटकना फिर थक हार कर घर पे 8-10 का ट्यूशन क्लास लेना , शारीरिक और मानसिक थकान इतनी हो ...

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लेखक के बारे में

लेखिका 🌻 मेरे प्रोफाईल.पर आए हो.तो कुछ पढ़ कर ही जाना!🍁♥️

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    mahendra Patel
    31 अक्टूबर 2020
    प्रारम्भ से मध्य तक बहोत अच्छा है...पर अंत "किसकी जिम्मेदारी"पर किया...यह शीर्षक से सम्बन्ध दृष्टिगत नही होता दिखाई पड़ रहा है
  • author
    Birendra Sinha
    17 अक्टूबर 2020
    बेरोजगारी पर अच्छा कटाक्ष, कृपया मेरी रचनाओं को भी पढ़ने का कष्ट करें और समीक्षा करें
  • author
    Shivii Yaduvanshi
    18 अक्टूबर 2020
    suuuuuuuuuper se bhi uuuuuper👌👌👌👌👌
  • author
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    mahendra Patel
    31 अक्टूबर 2020
    प्रारम्भ से मध्य तक बहोत अच्छा है...पर अंत "किसकी जिम्मेदारी"पर किया...यह शीर्षक से सम्बन्ध दृष्टिगत नही होता दिखाई पड़ रहा है
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    Birendra Sinha
    17 अक्टूबर 2020
    बेरोजगारी पर अच्छा कटाक्ष, कृपया मेरी रचनाओं को भी पढ़ने का कष्ट करें और समीक्षा करें
  • author
    Shivii Yaduvanshi
    18 अक्टूबर 2020
    suuuuuuuuuper se bhi uuuuuper👌👌👌👌👌