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बावरा मन - A poetic tale

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4.7

बावरा मन चंद उलझी साँसें रिहा कर, उसने चैन की सांस ली। सुकून भरे उस लम्हे ने, नजाने कितनी ख्वाइशों को थी उसके दिल मे पनाह दी। मदहोश वो, हर ख्वाब अपने आब से सी रही थी। सच्चे प्यार की उम्मीद शायद ...