बात उन दिनों की है जब हम बहोत छोटे थे, जब अब्बा की दिहाड़ी के चौदह ₹ पूरी तरह खत्म हो जाते तब अम्माँ हमारा पसंदीदा पकवान तैयार करतीं, तरकीब ये थी कि सूखी रोटियों के टुकड़े कपड़े के पुराने थैले में ...
कहानी बहुत बढ़िया है। यहाँ एक बात गौर करने की है कि कहीं न कहीं हम भारतीयों की मनोदशा इस स्तिथि की जिम्मेदार है। सात सात बच्चे वो भी तब जब घर की हालत ऐसी हो। जनसंख्या नियंत्रण की बहुत जरूरत है इस देश में।
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कहानी बहुत बढ़िया है। यहाँ एक बात गौर करने की है कि कहीं न कहीं हम भारतीयों की मनोदशा इस स्तिथि की जिम्मेदार है। सात सात बच्चे वो भी तब जब घर की हालत ऐसी हो। जनसंख्या नियंत्रण की बहुत जरूरत है इस देश में।
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