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बात उन दिनों की

4.5
10570

बात उन दिनों की है जब हम बहोत छोटे थे, जब अब्बा की दिहाड़ी के चौदह ₹ पूरी तरह खत्म हो जाते तब अम्माँ हमारा पसंदीदा पकवान तैयार करतीं, तरकीब ये थी कि सूखी रोटियों के टुकड़े कपड़े के पुराने थैले में ...

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लेखक के बारे में
समीक्षा
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  • author
    गुरनाम सिंह
    24 अगस्त 2019
    कहानी बहुत बढ़िया है। यहाँ एक बात गौर करने की है कि कहीं न कहीं हम भारतीयों की मनोदशा इस स्तिथि की जिम्मेदार है। सात सात बच्चे वो भी तब जब घर की हालत ऐसी हो। जनसंख्या नियंत्रण की बहुत जरूरत है इस देश में।
  • author
    Sabir Ali
    05 फ़रवरी 2018
    कहानी अत्यंत भावुक कर देती है माँ बाप की जद्दोजहद घर चलाने के लिए वहीं बच्चों की दम तोड़ती ख्वाहिशें
  • author
    श्याम कुमार राई
    25 अप्रैल 2019
    *** बहुत ही उम्दा तस्वीर खींची है लेखक ने। सफल हुए हैं उसमें जो वो कहना और जो उतारना चाहते थे। इसके लिए मेरी हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
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    गुरनाम सिंह
    24 अगस्त 2019
    कहानी बहुत बढ़िया है। यहाँ एक बात गौर करने की है कि कहीं न कहीं हम भारतीयों की मनोदशा इस स्तिथि की जिम्मेदार है। सात सात बच्चे वो भी तब जब घर की हालत ऐसी हो। जनसंख्या नियंत्रण की बहुत जरूरत है इस देश में।
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    Sabir Ali
    05 फ़रवरी 2018
    कहानी अत्यंत भावुक कर देती है माँ बाप की जद्दोजहद घर चलाने के लिए वहीं बच्चों की दम तोड़ती ख्वाहिशें
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    श्याम कुमार राई
    25 अप्रैल 2019
    *** बहुत ही उम्दा तस्वीर खींची है लेखक ने। सफल हुए हैं उसमें जो वो कहना और जो उतारना चाहते थे। इसके लिए मेरी हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।