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बस एक स्त्री

4.2
2215

सिमटा होता हैं पूरा घर फिर भी और समेट कर रखने कीचाह रखती हैं स्त्री !! .. बिखरा होता हैं उसका वजूद घर के कोने कोने में और परायी लड़की होती हैं स्त्री !! जिन्दगी जितने भी गमो में डुबो दे और भीगी ...

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लेखक के बारे में
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Neelima Sharma Nivia

नीलिमा शर्मा कोई ख़ुशबू उदास करती है कहानी संग्रह की लेखिका ,मुट्ठी भर अक्षर,खुसरो दरिया प्रेम का , आईना सच नही बोलता हाशिये का हक़ ,मूड्स ऑफ लॉक डाउन , लुका छिपी, मृगतृष्णा की संपादक ओर लेखक

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    ज्योति खरे
    13 अक्टूबर 2015
    स्त्री के स्वरुप और स्त्री की भावनाओं को उजागर करती  मन को छूती रचना और प्रभावपूर्ण बधाई   
  • author
    उपासना सियाग
    14 अक्टूबर 2015
    वाह ! तारीफ के शब्द ही कम पड़ रहे हैं। 
  • author
    रेवा टिबरेवाल
    14 अक्टूबर 2015
    shabd nahi mere pass...chand lines mey apne....stri ki dimag mey chal rahi baton ko uker kar rakh diya 
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    ज्योति खरे
    13 अक्टूबर 2015
    स्त्री के स्वरुप और स्त्री की भावनाओं को उजागर करती  मन को छूती रचना और प्रभावपूर्ण बधाई   
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    उपासना सियाग
    14 अक्टूबर 2015
    वाह ! तारीफ के शब्द ही कम पड़ रहे हैं। 
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    रेवा टिबरेवाल
    14 अक्टूबर 2015
    shabd nahi mere pass...chand lines mey apne....stri ki dimag mey chal rahi baton ko uker kar rakh diya