घोर अंधेरे काले बादलों में एक छोटी सी किरण जगी, जैसे किसी उम्मीद में बैठा था कोई अजनबी, घुमड़- घुमड़ न जानें क्यों फिर कोई एक आस जगी, सूखी धरती में उगते फूलों की जैसे कोई प्यास बुझी, यही तो है सावन ...
बहुत ही शानदार रचना की है आपने मैं आपकी रचना जब भी आप लिखते हो ध्यान से पढ़ता हूं आप भी मेरी रचना भूतों की नगरी को एक बार जरूर पढ़ें और अपना आशीर्वाद प्रदान करें बहुत-बहुत धन्यवाद 🙏💐💐💐🙏🙏🌹🌹🌹🙏🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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