अब भी अगर कभी तथाकथित बुद्धिजीवी साहित्यकारों द्वारा लुगदी साहित्य कह कर नकार दिए जाने वाला साहित्य हमारे सामने अपने, हार्ड (कॉपी) या फिर डिजिटल स्वरूप में आ जाता है तो पुराने दिन..पुराना समय एक बार ...
बहुत खूब ! मैने 'बारह सवाल' यह उपन्यास पढ़ा है हालांकि उसे पढ़े बरसों हो गये तब भी विकास गुप्ता का कारनामा के बतौर वह याद है । यह तेज रफ्तार तथा दिमाग हिला देने वाला उपन्यास है ।।
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बहुत खूब ! मैने 'बारह सवाल' यह उपन्यास पढ़ा है हालांकि उसे पढ़े बरसों हो गये तब भी विकास गुप्ता का कारनामा के बतौर वह याद है । यह तेज रफ्तार तथा दिमाग हिला देने वाला उपन्यास है ।।
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