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बंद का अर्थशास्त्र और आम आदमी

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राम खिलावन हड़बड़ाहट में तेजी से भागे जा रहे थे। उनकी तेजी और हड़बड़ाहट देखकर मैंने उन्हें रोककर पूछा ‘‘अरे भइया राम खिलावन, सरपट-सरपट कहाँ भागे जा रहे हैं? क्या कोई दुर्घटना हो गई है।’’ ‘‘अरे नाहीं, ...

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लेखक के बारे में

कहानियां मैं लिखता नहीं हूं बल्कि कहानियों के आंगन में खड़े होकर थ्री डी फिल्म की तरह गुजरता हूँ। सम्पर्क ः ‘नीड़’ गली न. 1, आदर्श कॉलोनी, गुना (म.प्र.) फोन - (07542) 292202 मोबा. - 9329236094 ईमेल ः[email protected]

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Aman Yadav "समीर"
    29 नवम्बर 2018
    कुछ शब्द अस्पस्ट है sir पर लेख बहुत अच्छा है
  • author
    18 मई 2020
    उम्दा
  • author
    17 अप्रैल 2017
    बढ़िया व्यंग्य। हमारे देश में सब पर राजनीति हो जाती है। बंद, हड़ताल, धरने ये सब राजनीति में बहुत आम हैं। अपने अपने तरीके से लोग बंद में भी कमाई का गणित लगाकर सफल बनाने की जुगाड़ूकोशिश करते हैं।
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    Aman Yadav "समीर"
    29 नवम्बर 2018
    कुछ शब्द अस्पस्ट है sir पर लेख बहुत अच्छा है
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    18 मई 2020
    उम्दा
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    17 अप्रैल 2017
    बढ़िया व्यंग्य। हमारे देश में सब पर राजनीति हो जाती है। बंद, हड़ताल, धरने ये सब राजनीति में बहुत आम हैं। अपने अपने तरीके से लोग बंद में भी कमाई का गणित लगाकर सफल बनाने की जुगाड़ूकोशिश करते हैं।