जिनका न आदि है, न जिनका अंत है.... वो सर्वग्य हैं, स्वयंभू है.... परमेश्वर हैं.... परमपिता हैं... वो ही मृत्युंजय है.... हर जीव में उनका वास है... हर जन्म में उन्हीं का जन्म होता है, और हर मृत्यु में उन्ही की मृत्यु भी.....वो ही कोटि कोटि ब्रह्माण्ड के रचयिता हैं, पालनकर्ता हैं और संहारकर्ता भी वही हैं..। मन का वेग हैं और महासमाधि का ध्यान भी वही हैं....परित्यक्त के आश्रय हैं, गंगाधर हैं, नीलकंठ हैं, अर्धनारीश्वर हैं, नटराज हैं, भोले हैं, महासन्यासी हैं... ओमकार जिनकी वाणी है, भांग, धतूरा और विल्व पत्र जिनको अति प्रिय है.... वो शिव हैं, शम्भू है, महाकाल हैं, निरंजन हैं.... हर स्वरूप सजीव या निर्जीव में उन्ही का वास है... कण कण में विद्यमान है.... विश्वेश्वर, त्रयम्बक, त्रिपुरान्तक, महारुद्र, सर्वेश्वर, सदाशिव हैं....ऐसे मेरे नाथ अर्द्धनारीश्वर महादेव को मैं कोटि कोटि नमन करता हूँ.....
~~ हर हर महादेव ~~
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