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बलात्कार का दर्द

4.7
304686

हम दोनों चेन्नई में 2 महीने पहले ही आए थे. मेरे पति सुनील का यहां ट्रांसफर हुआ था. मेरे पास एमबीए की डिगरी थी. सो, मुझे भी नौकरी मिलने में ज्यादा दिक्कत न आई. हमारे दोस्त अभी कम थे. यही सोच कर ...

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लेखक के बारे में
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कोमल राजपूत

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समीक्षा
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  • author
    Anjali Sharma
    10 मई 2019
    एक सटीक और मार्मिक कहानी। कहानी के हर पात्र बहुत मंजे हुए हैं। कहानी का हर शब्द भावों को व्यक्त कर रहा है। सच, जब पढ़ रही थी तो बिल्कुल ऐसी खोई जेसे सब मेरी ही आंखों के सामने हो रहा हो। जब शैली ने अपना दर्द बताया तो उसके साथ में भी रोई। जब शैली की मां ने उसे समझाया तो वही तेवर मेरे अंदर भी आ गया हो जेसे और जब छाया ने अपनी व्यथा सुनाई तब बिना रोए निस्थल सी हो गई मैं। कहानी के अंत में फूट फूट कर रो पड़ी। आपने कहानी के माध्यम से समाज का जो आईना प्रस्तुत करने का प्रयास किया है उसमें आप सफल हुई। लेकिन सच कहूं तो उस दर्दनाक दरिंदगी का दर्द कलम से हुबहु बयां नहीं किया जा सकता। वो दर्द सिर्फ महसूस किया जा सकता है। आत्मा को झिंझोड़ देने वाले उस दर्द के सैलाब को काश हम कहानियों से शांत कर पाते। दिनों-दिन बढ़ती इस दरिंदगी का न जाने कब अंत होगा। कब लोग मासूमों को अपनी हवस का शिकार बनाना छोड़ेंगे।
  • author
    Vikas Ojha
    18 मार्च 2019
    मैं सच में निःशब्द हूँ, और ऐसे दरिंदों की कड़ी निंदा करता हूँ कि कैसे ये लोग खुद एक औरत का अंश होकर भी किसी लड़की ,औरत का दर्द नहीं समझते ऐसे लोगों को जीने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए। और इतना समझने वाला पति सभी को मिले।
  • author
    07 जुलाई 2018
    भरी आंखों से आपकी कहानी पढ़ी, हमारे समाज का एक घिनोना चेहरा प्रस्तुत किया आपने हर बार औरत को ही गलत मानने की भूल,,,, और एक अच्छा चेहरा भी जिसमे पति का पत्नी को सच्चा प्यार में सम्मान। बहुत अच्छी रचना।
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    Anjali Sharma
    10 मई 2019
    एक सटीक और मार्मिक कहानी। कहानी के हर पात्र बहुत मंजे हुए हैं। कहानी का हर शब्द भावों को व्यक्त कर रहा है। सच, जब पढ़ रही थी तो बिल्कुल ऐसी खोई जेसे सब मेरी ही आंखों के सामने हो रहा हो। जब शैली ने अपना दर्द बताया तो उसके साथ में भी रोई। जब शैली की मां ने उसे समझाया तो वही तेवर मेरे अंदर भी आ गया हो जेसे और जब छाया ने अपनी व्यथा सुनाई तब बिना रोए निस्थल सी हो गई मैं। कहानी के अंत में फूट फूट कर रो पड़ी। आपने कहानी के माध्यम से समाज का जो आईना प्रस्तुत करने का प्रयास किया है उसमें आप सफल हुई। लेकिन सच कहूं तो उस दर्दनाक दरिंदगी का दर्द कलम से हुबहु बयां नहीं किया जा सकता। वो दर्द सिर्फ महसूस किया जा सकता है। आत्मा को झिंझोड़ देने वाले उस दर्द के सैलाब को काश हम कहानियों से शांत कर पाते। दिनों-दिन बढ़ती इस दरिंदगी का न जाने कब अंत होगा। कब लोग मासूमों को अपनी हवस का शिकार बनाना छोड़ेंगे।
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    Vikas Ojha
    18 मार्च 2019
    मैं सच में निःशब्द हूँ, और ऐसे दरिंदों की कड़ी निंदा करता हूँ कि कैसे ये लोग खुद एक औरत का अंश होकर भी किसी लड़की ,औरत का दर्द नहीं समझते ऐसे लोगों को जीने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए। और इतना समझने वाला पति सभी को मिले।
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    07 जुलाई 2018
    भरी आंखों से आपकी कहानी पढ़ी, हमारे समाज का एक घिनोना चेहरा प्रस्तुत किया आपने हर बार औरत को ही गलत मानने की भूल,,,, और एक अच्छा चेहरा भी जिसमे पति का पत्नी को सच्चा प्यार में सम्मान। बहुत अच्छी रचना।