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बदलाव

4.4
1981

तू चाहे तो इस दुनिया का हर ताना बाना बदलेगा हर रीत पुरानी बदलेगी, हर तौर पुराना बदलेगा तू नए दौर की आंधी है, है नहीं किसी का बस तुझपर इस दौर पे गिर बिजली बनकर, ये दौर पुराना बदलेगा सुपुर्द-ए-ख़ाक तुझे ...

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लेखक के बारे में

मैं अंकित मिश्रा, भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक जिला आजमगढ़, तहसील फूलपुर में 27 नवम्बर 1992 को जन्म हुआ! पिता के संघर्ष ने मुझे छोटी से उम्र में ही मिट्टी से जुदा कर दिया और ज़िन्दगी के सफर की शुरुआत यहीं से हुई! प्रारंभिक शिक्षा, विश्वविद्यालय की भाषा एवं कला की निपुणता के लिए एडवांस डिप्लोमा(स्पेनिश) जामिया मिल्लिया इस्लामिया एवं सेंट. स्टीफेंस कॉलेज से पूरी की और उसके बाद अपनी मास्टर्स इन स्पेनिश की पढ़ाई के लिए डिपार्टमेंट ऑफ़ जर्मेनिक एंड रोमैंस स्टूडीज़, फैकल्टी ऑफ़ आर्ट्स, दिल्ली विश्वविद्यालय में 2015 में दाखिला लिया! बचपन से ही ग़ज़लों के प्रति लगाव ने शेर-ओ-शायरी पढ़ने पर मजबूर कर दिया! मिर्ज़ा ग़ालिब, फैज़ अहमद फैज़, कैफ़ी आज़मी, मजाज़ लखनवी जैसे महान शायरों को पढ़ा भी और समझा भी! मिट्टी से बिछड़ने का दर्द, जीवन के एकाकी ने धीरे धीरे ही सही हाथ में काग़ज़ और कलम का टुकड़ा ला दिया! लेखन की औपचारिक शुरुआत सन 2011 में हो गयी! इसी दौरान मैं रंग मंच से भी जुड़ा रहा! जामिया में डॉ. दानिश इक़बाल, डॉ. एम्. के. रैना, इन सब के निर्देशन में काम करने की वजह से वकुपटता में भी काफी सुधार आया!

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Prashant Rathore
    01 फ़रवरी 2017
    Bahut achhi koshish hai badla ki achhi lagi
  • author
    Aslam Khan
    15 फ़रवरी 2017
    unique lines
  • author
    Nitesh Dubey
    04 फ़रवरी 2017
    बहुत खूब
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    Prashant Rathore
    01 फ़रवरी 2017
    Bahut achhi koshish hai badla ki achhi lagi
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    Aslam Khan
    15 फ़रवरी 2017
    unique lines
  • author
    Nitesh Dubey
    04 फ़रवरी 2017
    बहुत खूब