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बढ़े चलो-बढ़े चलो

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वीर रस

घोर अंधकार हो , रो रहे सियार हों, हाथ को हाथ सुझाई न दे , ड़र लगे, कुछ दिखाई न दे; तो क्या--- बढ़े चलो बढ़े चलो । जब सिर्फ चढ़ाई का ही रास्ता हो, पैरों की हालत ख़स्ता हो, तृषा बहुत सताए, और जल की ...

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लेखक के बारे में
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सूरज शर्मा

इंजीनियर , अन्वेषक , गृहस्थ और सत्यार्थी

समीक्षा
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  • author
    Damini
    26 मार्च 2019
    बहुत सुंदर कहा आपने हर हाल में बढ़ते ही रहना चाहिए
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    Damini
    26 मार्च 2019
    बहुत सुंदर कहा आपने हर हाल में बढ़ते ही रहना चाहिए