pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

बड़ा आम

4.7
790

एक पुराने आम का अवसान जिसकी छांव में मेरा बचपन गुजरा।

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में

बस यूं ही अक्षर शब्दों में, शब्द भावनाओं में और भावनाएं फिर अक्षरों में समा जाती हैं। तब आस्तित्व में आती हैं प्रकाशित होकर पुस्तकें "समय समेटे साक्ष्य" "सियालकोट की सरहद" "जीवन में कुछ और बहुत है" "समुंदरों के पार" "पानी की परत".....

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Manisha Shukla
    05 मई 2018
    बहुत ही खूबसूरती से बयाँ किया है समर जी ने बीते कल के एक मूक साथी के चले जाने का दुःख, उसकी स्मृतियां... बड़े आम की छांव में बीते सुनहरे पल ...आधुनिक पीढ़ी का दुर्भाग्य है कि इस तरह का सम्बंध न तो हम लोग जी पाएंगे, न महसूस कर पाएंगे और न ही कभी लिख पाएंगे।
  • author
    16 जून 2018
    अति सुन्दर समर जी, ऐसा प्रतीत हुआ जैसे आपने अपनी पुरानी यादों को आम के माध्यम से उसकी मिठास और महक के साथ पाठकों को चखने के लिए परोस दी हो।बहुत-बहुत बधाई।जितना कष्ट आपको बङे आम के पेङ के गिरने पर हुआ उतना ही दर्द पङौस की काकी की हालत देख कर मुझे हुआ ङोगा,आप कल्पना कर सकते है।समय मिले तो प्रतिलिपि पर "गोदान के बाद " तथा "मंगलसूत्र का वरदान" पढें। धन्यवाद।
  • author
    Chetan Sharma
    05 मई 2018
    आप की लेखनी का कोई जवाब नहीं है, निःस्वार्थ प्रेम की परिभाषा कोई आपसे सीखे।प्रेम शब्द कहने के लिए तो बहुत ही छोटा है किंतु न तो लोग आपकी तरह कर पाते है और न ही समझ पाते है।आपके प्यार की वजह से टुन्नू भटक कर भी वापस आ गया।कास सभी लोग आपकी तरह बन जाएं। आपका अनुज चेतन शर्मा पत्रकार
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Manisha Shukla
    05 मई 2018
    बहुत ही खूबसूरती से बयाँ किया है समर जी ने बीते कल के एक मूक साथी के चले जाने का दुःख, उसकी स्मृतियां... बड़े आम की छांव में बीते सुनहरे पल ...आधुनिक पीढ़ी का दुर्भाग्य है कि इस तरह का सम्बंध न तो हम लोग जी पाएंगे, न महसूस कर पाएंगे और न ही कभी लिख पाएंगे।
  • author
    16 जून 2018
    अति सुन्दर समर जी, ऐसा प्रतीत हुआ जैसे आपने अपनी पुरानी यादों को आम के माध्यम से उसकी मिठास और महक के साथ पाठकों को चखने के लिए परोस दी हो।बहुत-बहुत बधाई।जितना कष्ट आपको बङे आम के पेङ के गिरने पर हुआ उतना ही दर्द पङौस की काकी की हालत देख कर मुझे हुआ ङोगा,आप कल्पना कर सकते है।समय मिले तो प्रतिलिपि पर "गोदान के बाद " तथा "मंगलसूत्र का वरदान" पढें। धन्यवाद।
  • author
    Chetan Sharma
    05 मई 2018
    आप की लेखनी का कोई जवाब नहीं है, निःस्वार्थ प्रेम की परिभाषा कोई आपसे सीखे।प्रेम शब्द कहने के लिए तो बहुत ही छोटा है किंतु न तो लोग आपकी तरह कर पाते है और न ही समझ पाते है।आपके प्यार की वजह से टुन्नू भटक कर भी वापस आ गया।कास सभी लोग आपकी तरह बन जाएं। आपका अनुज चेतन शर्मा पत्रकार