बस यूं ही अक्षर शब्दों में, शब्द भावनाओं में और भावनाएं फिर अक्षरों में समा जाती हैं। तब आस्तित्व में आती हैं प्रकाशित होकर पुस्तकें "समय समेटे साक्ष्य" "सियालकोट की सरहद" "जीवन में कुछ और बहुत है" "समुंदरों के पार" "पानी की परत".....
सारांश
बस यूं ही अक्षर शब्दों में, शब्द भावनाओं में और भावनाएं फिर अक्षरों में समा जाती हैं। तब आस्तित्व में आती हैं प्रकाशित होकर पुस्तकें "समय समेटे साक्ष्य" "सियालकोट की सरहद" "जीवन में कुछ और बहुत है" "समुंदरों के पार" "पानी की परत".....
बहुत ही खूबसूरती से बयाँ किया है समर जी ने बीते कल के एक मूक साथी के चले जाने का दुःख, उसकी स्मृतियां... बड़े आम की छांव में बीते सुनहरे पल ...आधुनिक पीढ़ी का दुर्भाग्य है कि इस तरह का सम्बंध न तो हम लोग जी पाएंगे, न महसूस कर पाएंगे और न ही कभी लिख पाएंगे।
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अति सुन्दर समर जी, ऐसा प्रतीत हुआ जैसे आपने अपनी पुरानी यादों को आम के माध्यम से उसकी मिठास और महक के साथ पाठकों को चखने के लिए परोस दी हो।बहुत-बहुत बधाई।जितना कष्ट आपको बङे आम के पेङ के गिरने पर हुआ उतना ही दर्द पङौस की काकी की हालत देख कर मुझे हुआ ङोगा,आप कल्पना कर सकते है।समय मिले तो प्रतिलिपि पर "गोदान के बाद " तथा "मंगलसूत्र का वरदान" पढें। धन्यवाद।
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आप की लेखनी का कोई जवाब नहीं है, निःस्वार्थ प्रेम की परिभाषा कोई आपसे सीखे।प्रेम शब्द कहने के लिए तो बहुत ही छोटा है किंतु न तो लोग आपकी तरह कर पाते है और न ही समझ पाते है।आपके प्यार की वजह से टुन्नू भटक कर भी वापस आ गया।कास सभी लोग आपकी तरह बन जाएं।
आपका अनुज चेतन शर्मा पत्रकार
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बहुत ही खूबसूरती से बयाँ किया है समर जी ने बीते कल के एक मूक साथी के चले जाने का दुःख, उसकी स्मृतियां... बड़े आम की छांव में बीते सुनहरे पल ...आधुनिक पीढ़ी का दुर्भाग्य है कि इस तरह का सम्बंध न तो हम लोग जी पाएंगे, न महसूस कर पाएंगे और न ही कभी लिख पाएंगे।
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अति सुन्दर समर जी, ऐसा प्रतीत हुआ जैसे आपने अपनी पुरानी यादों को आम के माध्यम से उसकी मिठास और महक के साथ पाठकों को चखने के लिए परोस दी हो।बहुत-बहुत बधाई।जितना कष्ट आपको बङे आम के पेङ के गिरने पर हुआ उतना ही दर्द पङौस की काकी की हालत देख कर मुझे हुआ ङोगा,आप कल्पना कर सकते है।समय मिले तो प्रतिलिपि पर "गोदान के बाद " तथा "मंगलसूत्र का वरदान" पढें। धन्यवाद।
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