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ऐ मौत रुक जा जरा

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ऐ मौत रुक जा जरा, मेरी मंजिल अभी बाकी तो है ले जाना फिर कभी, कुछ कर्ज चुकाना अभी बाकी तो है मिले है नए रहगुजर कुछ, उनसे मुलाकात अभी बाकी तो है कुछ जल रही है दुनिया ऐसे, जिसे बुझाने की मेरी कोशिश ...

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लेखक के बारे में
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Supriya

ये कहानी और कविताएं नहीं बल्कि घटनाएं है जो मै जीती हूं। सम्पूर्ण धारावाहिक रचनाएं: 'खुदकुशी ', ' नरसिम्हा ', ' ये कहां आ गए हम ' कहानी खत्म हो चुकी है आप पढ़ सकते है। फिलहाल ' अमीन चाचा ' के आगे का भाग रुका हुआ है जिसके लिए क्षमा चाहती हूं। अगस्त में पूरी हो जाएगी। Insta Id - chal_ji_le Blog - supiwordpresz.wordpress.com ये सारे लेखन स्वरचित और मौलिक है, कृपया मेरे शब्दों को कॉपी या इनसे छेड़खानी ना करे वरना कानूनी क्रिया की जाएगी। Respect my copyright🙏🙏

समीक्षा
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    Sharad Yadav
    25 अप्रैल 2021
    यह जिन्दगी ही तो है जो गिरती है संभलती है फिर दौड़ने के लिए जिंदगी चलने का नाम है लाख जलजले आ जाये फिर कोपले फूटेगी उन बुझी हुई राख से ये हमे है यकीं
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    Sharad Yadav
    25 अप्रैल 2021
    यह जिन्दगी ही तो है जो गिरती है संभलती है फिर दौड़ने के लिए जिंदगी चलने का नाम है लाख जलजले आ जाये फिर कोपले फूटेगी उन बुझी हुई राख से ये हमे है यकीं