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औरत नहीं मृगमरीचिका

4.4
427

<p>औरत... हुँ मैं... हाँ वो ही तो...तदापि,</p> <p>मैं क्या हूँ ,एक खोखला निराधार स्वप्न,<br /> मैं मरुस्थल की मृगमरीचिका,आभास है होने का ,<br /> मगर मैं नहीं हूँ।।</p> <p>मैं वो वन लता जो अपने ...

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समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    lokendra
    31 दिसम्बर 2017
    very good
  • author
    Sanyogita Thakur
    27 सितम्बर 2018
    बहुत सलीके से औरत की मनोदशा को दर्शाया है आपने ।आपकी भाषाशैली बहुत ही सुन्दर है ।
  • author
    Mohit Khare
    28 फ़रवरी 2018
    arranged poetic Hindi
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    lokendra
    31 दिसम्बर 2017
    very good
  • author
    Sanyogita Thakur
    27 सितम्बर 2018
    बहुत सलीके से औरत की मनोदशा को दर्शाया है आपने ।आपकी भाषाशैली बहुत ही सुन्दर है ।
  • author
    Mohit Khare
    28 फ़रवरी 2018
    arranged poetic Hindi