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"और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा"

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"और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा " फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के मशहूर शेर की इस पंक्ति को याद करते हुए मैं ये कविता अपनी उस मित्र को समर्पित करना चाहूंगी जो आज कल काफी उलझनों के दौर से गुजर रही ...

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लेखक के बारे में

कभी हताश हुए, कभी निराश हुए , वक्त का तकाज़ा था, उम्र से पहले उम्रदराज़ हुए..

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Radheshyam Yogi
    24 मई 2020
    बहुत ही खूबसूरत लिखा आपने और सच्चाई को लिखा है, बेहद ही उम्दा.....प्रेम जिंदगी कि नींव होता हैं और हम पूरे नेकदिल से जब अपने प्रेम को निभाते है तो अपने प्रेमी या प्रेमिका से भी नेकदिल प्रेम की चाह रखना गलत है क्या ? जो प्रेम हमारी जिंदगी की नींव होता है, उस प्रेम के बिना जिंदगी कितनी कठिन हो सकती है, इसका अनुमान है दिल दहला देने वाला होता है। ......................... आपने खूबसूरत लिखने के साथ साथ सच्चाई को बयां किया है। शुक्रिया जी 🙏🙏🙏🙏
  • author
    शैलेश सिंह "शैल"
    29 मई 2020
    किसी एक के लिए पूरी दुनिया नही छोड़ सकते । आपने बहुत अच्छे से समझाया और बताया है। दुआएँ रंग लाएगी,, और वो फिर मुस्कुराएगी।।👍👍👍
  • author
    pragya baroliya
    01 मई 2020
    👌
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    Radheshyam Yogi
    24 मई 2020
    बहुत ही खूबसूरत लिखा आपने और सच्चाई को लिखा है, बेहद ही उम्दा.....प्रेम जिंदगी कि नींव होता हैं और हम पूरे नेकदिल से जब अपने प्रेम को निभाते है तो अपने प्रेमी या प्रेमिका से भी नेकदिल प्रेम की चाह रखना गलत है क्या ? जो प्रेम हमारी जिंदगी की नींव होता है, उस प्रेम के बिना जिंदगी कितनी कठिन हो सकती है, इसका अनुमान है दिल दहला देने वाला होता है। ......................... आपने खूबसूरत लिखने के साथ साथ सच्चाई को बयां किया है। शुक्रिया जी 🙏🙏🙏🙏
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    शैलेश सिंह "शैल"
    29 मई 2020
    किसी एक के लिए पूरी दुनिया नही छोड़ सकते । आपने बहुत अच्छे से समझाया और बताया है। दुआएँ रंग लाएगी,, और वो फिर मुस्कुराएगी।।👍👍👍
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    pragya baroliya
    01 मई 2020
    👌