आत्म प्रशंसा रोग है, छिपा हुआ है दम्भ। सरवर में जब डूबते, पकड़ न पाते खम्भ।। प्रशंसा तो संजीवनी, नापें नभ पाताल। मुरदों में भी प्राण भर, कर देता वाचाल।। आत्म प्रशंसा से बचें, भरमायें ना आप। अपने मन ...
विजया बैंक में सहायक प्रबंधक से सेवा निवृत। पिता स्व. रामनाथ शुक्ल ‘श्री नाथ’ से साहित्यिक विरासत एवं प्रेरणा। अपने विद्यार्थी जीवन से ही लेखन के प्रति झुकाव। राष्ट्रीय, सामाजिक एवं मानवीय संवेदनाओं से ओत-प्रोत साहित्य सृजन की अनवरत यात्रा।
सारांश
विजया बैंक में सहायक प्रबंधक से सेवा निवृत। पिता स्व. रामनाथ शुक्ल ‘श्री नाथ’ से साहित्यिक विरासत एवं प्रेरणा। अपने विद्यार्थी जीवन से ही लेखन के प्रति झुकाव। राष्ट्रीय, सामाजिक एवं मानवीय संवेदनाओं से ओत-प्रोत साहित्य सृजन की अनवरत यात्रा।
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