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आश्वासन का टुकड़ा

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इस बार तो तुझे गए कितने समय हो गया, तुझको गले लगाए जैसे मुझे एक जमाना हो गया, वीडियो कॉल पर जब नम आंखों और धड़कते दिल से पूछती है वो माँ " बेटा सच बता अब तू कब आएगा ", आ कर मुझे फिर से अपने गले ...

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लेखक के बारे में
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Risha Gupta

लेखक बनना आसान कहा, खुद को भीतर तक कुरेदती हूँ,  बिखरती हूँ तब जाकर ये कलम निखरती है ✍️✍️

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    18 अप्रैल 2025
    भावुक हृदय से निकली बहुत ही सुंदर कविता। पर शायद ये वियोग कर मां के भाग्य में आता है जब उसके बच्चे पंख पसारे इस दुनियां में उड़ जाते हैं। फिर बस मेहमान की तरह दो चार दिन की अपनी शक्ल दिखा पाते हैं और फिर जल्दी आऊंगा कह कर एक आश्वासन का टुकड़ा उसे थमा कर वापस उड़ जाते हैं। ❤️❤️❤️❤️
  • author
    Sunita Jha
    18 अप्रैल 2025
    बहुत दर्द भरी कहानी होती है उस मां की जिसे झूठा वादा करने वाला बेटा होता है।
  • author
    Madhavi Sharma "Aparajita"
    18 अप्रैल 2025
    बेहद हृदय स्पर्शी सृजन..!!
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    18 अप्रैल 2025
    भावुक हृदय से निकली बहुत ही सुंदर कविता। पर शायद ये वियोग कर मां के भाग्य में आता है जब उसके बच्चे पंख पसारे इस दुनियां में उड़ जाते हैं। फिर बस मेहमान की तरह दो चार दिन की अपनी शक्ल दिखा पाते हैं और फिर जल्दी आऊंगा कह कर एक आश्वासन का टुकड़ा उसे थमा कर वापस उड़ जाते हैं। ❤️❤️❤️❤️
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    Sunita Jha
    18 अप्रैल 2025
    बहुत दर्द भरी कहानी होती है उस मां की जिसे झूठा वादा करने वाला बेटा होता है।
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    Madhavi Sharma "Aparajita"
    18 अप्रैल 2025
    बेहद हृदय स्पर्शी सृजन..!!