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अर्ध सत्य

4.7
2485

एक आठ साल का बच्चा रात के धुप्प अँधेरे में हांफता हुआ भागा जा रहा था | जंगल , पठार सब कुछ लांघता ....बिना किसी उद्देश्य के | किसी से , कहीं से दूर खुद को लिए जाना ही मकसद हो जैसे | भागते – भागते ...

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लेखक के बारे में

वीणा वत्सल सिंह

समीक्षा
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  • author
    GAURAV THAKUR
    12 नवम्बर 2020
    पटकथा का अप्रत्याशित मोड़... जिसकी उम्मीद नहीं वैसी स्थिति का परिचय होना। अंततः जीवन का सच। एक आम व्यक्ती, जैसा कि समझ पा रहा हु जो दबा कुचला जीवन व्यतित किया। सबको बाबु साहब कहकर संबोधन करते रहता होगा और खुद को उन से नीचे जान समझता होगा। पर उसके जैसी हिम्मत बड़े से बड़े सूरमा में नहीं। हृदय ग़दगद हो गया
  • author
    29 जुलाई 2020
    जीवन चक्र के सारे पहलुओं का मार्मिक चित्रण आपने प्रस्तुत किया है l विभिन्न परिस्थितियों में अपने को मजबूत रखकर उसने जो संघर्ष किया बहुत ही कठिनाइयों का सामना करके उसने अपने परिवार को संजोकर रखो l बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति है सर आपकी
  • author
    23 सितम्बर 2017
    कहानी अच्ग्छी है। इसे और भी रुचिकर बनाने के लिये राजघाट पर रामप्रकाश से विकास की मुलाकात से कहानी शुरु होती और पूरी कहानी फ्लश बैक में चलती तो अच्छा रह्ता। सुन्दर प्रयास!
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    GAURAV THAKUR
    12 नवम्बर 2020
    पटकथा का अप्रत्याशित मोड़... जिसकी उम्मीद नहीं वैसी स्थिति का परिचय होना। अंततः जीवन का सच। एक आम व्यक्ती, जैसा कि समझ पा रहा हु जो दबा कुचला जीवन व्यतित किया। सबको बाबु साहब कहकर संबोधन करते रहता होगा और खुद को उन से नीचे जान समझता होगा। पर उसके जैसी हिम्मत बड़े से बड़े सूरमा में नहीं। हृदय ग़दगद हो गया
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    29 जुलाई 2020
    जीवन चक्र के सारे पहलुओं का मार्मिक चित्रण आपने प्रस्तुत किया है l विभिन्न परिस्थितियों में अपने को मजबूत रखकर उसने जो संघर्ष किया बहुत ही कठिनाइयों का सामना करके उसने अपने परिवार को संजोकर रखो l बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति है सर आपकी
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    23 सितम्बर 2017
    कहानी अच्ग्छी है। इसे और भी रुचिकर बनाने के लिये राजघाट पर रामप्रकाश से विकास की मुलाकात से कहानी शुरु होती और पूरी कहानी फ्लश बैक में चलती तो अच्छा रह्ता। सुन्दर प्रयास!