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आरक्षण

4.1
1244

न जाने अब दलितों को रिजर्वेशन की क्या जरुरत हे , अब तो कहीं कोई भेदभाव भी नहीं हे ,,सब साला ड्रामा हे ,राजनीति हे" अख़बार पढ़ते हुए उसके पिता ये गुस्से से बड़बड़ा रहे थे । मौका सही जानकार उसने आज कह ही ...

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लेखक के बारे में

एक शिक्षक जो लिखने में सुख पाता है।

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Krishan Kumar
    22 मई 2020
    इस कहानी में वर्तमान समय में भारतिय समाज की गहराई साफ दिखती है। उन लोगो को ये आईना दिखाती है जो कहते है कि भेद भाव खत्म हो गया है अब आरक्षण की जरूरत नही है।
  • author
    Akash
    29 अगस्त 2018
    आरक्षण का इससे अच्छा कोई जवाब नही ह ।।
  • author
    दीपक त्रिपाठी
    01 दिसम्बर 2017
    सटीक सोच... मैंने भी 'आरक्षण' शीर्षक वाली एक लघु कथा लिखी है | प्यारे मित्रों आप सभी आमंत्रित हैं
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    Krishan Kumar
    22 मई 2020
    इस कहानी में वर्तमान समय में भारतिय समाज की गहराई साफ दिखती है। उन लोगो को ये आईना दिखाती है जो कहते है कि भेद भाव खत्म हो गया है अब आरक्षण की जरूरत नही है।
  • author
    Akash
    29 अगस्त 2018
    आरक्षण का इससे अच्छा कोई जवाब नही ह ।।
  • author
    दीपक त्रिपाठी
    01 दिसम्बर 2017
    सटीक सोच... मैंने भी 'आरक्षण' शीर्षक वाली एक लघु कथा लिखी है | प्यारे मित्रों आप सभी आमंत्रित हैं