न जाने अब दलितों को रिजर्वेशन की क्या जरुरत हे , अब तो कहीं कोई भेदभाव भी नहीं हे ,,सब साला ड्रामा हे ,राजनीति हे" अख़बार पढ़ते हुए उसके पिता ये गुस्से से बड़बड़ा रहे थे । मौका सही जानकार उसने आज कह ही ...
इस कहानी में वर्तमान समय में भारतिय समाज की गहराई साफ दिखती है। उन लोगो को ये आईना दिखाती है जो कहते है कि भेद भाव खत्म हो गया है अब आरक्षण की जरूरत नही है।
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