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अपराध बोध

4.2
271

ऐसा फिसला मन कि संस्कारों की पोटली जा गिरी लालच की आग में आँख खुली तो आत्मा मूसल की तरह कुचलने लगी अस्तित्व को पश्चाताप के समुद्र में आंसूओं का नमक मिला तो बिखर गया ठोस पत्थर तैरने लगा दुःख हल्का ...

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लेखक के बारे में

ब्रजेश कानूनगो जन्म - 25 सितम्बर 1957 देवास, मध्य प्रदेश में। शिक्षा - रसायन विज्ञान तथा हिन्दी साहित्य मे स्नातकोत्तर। प्रकाशन - व्यंग्यसंग्रह- ‘पुन: पधारें’, (1995), ‘सूत्रों के हवाले से’ (2014) वसुधा की अनुषंगी कविता पुस्तिका ‘धूल और धुएँ के परदे में’ (1999) कविता संग्रह ‘इस गणराज्य में’ (2014),कविता पुस्तिका ‘चिड़िया का सितार’ (2017) बाल कथाओं की पुस्तक ‘फूल शुभकामनाओं के’ (2003) , बाल गीतों की पुस्तिका ‘चाँद की सेहत’ (2007) और लघु कहानियों का संग्रह ’रिंगटोन’ (2016) प्रकाशित। सम्प्रति - रचनात्मक लेखन, सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में संलग्न, तंगबस्तियों के गरीब बच्चों के लिए चलाए जाने वाले व्यक्तित्व विकास शिविरों मे सक्रिय सहयोग। सम्पर्क - मनोरम,503 ए,गोयल रिजेंसी,चमेली पार्क,कनाडिया रोड, इन्दौर-452018 फोन -0731 2590469 मो.न. 09893944294 ई-मेल- [email protected]

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    AnshuPriya Agrawal
    11 अप्रैल 2020
    बहुत ही सुंदर पंक्तियां आपने लिखी है। एक एक शब्द बढ़िया सुनियोजित की है आपने। रचना बहुत ही अच्छी है । बहुत सुंदर भावनाओं से सजी हुई रचना ।बहुत ही बेहतरीन । लाजवाब एक एक पंक्ति बहुत सुंदर। बेहतरीन भावनाओं से सजी हुई रचना।
  • author
    Ravindra N.Pahalwam
    06 अक्टूबर 2018
    पश्चात का प्रतीक श्रेष्ठ है / आपकी रचना की मैं सराहना करता हुं.
  • author
    Manjit Singh
    26 जुलाई 2020
    prernadayak
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    AnshuPriya Agrawal
    11 अप्रैल 2020
    बहुत ही सुंदर पंक्तियां आपने लिखी है। एक एक शब्द बढ़िया सुनियोजित की है आपने। रचना बहुत ही अच्छी है । बहुत सुंदर भावनाओं से सजी हुई रचना ।बहुत ही बेहतरीन । लाजवाब एक एक पंक्ति बहुत सुंदर। बेहतरीन भावनाओं से सजी हुई रचना।
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    Ravindra N.Pahalwam
    06 अक्टूबर 2018
    पश्चात का प्रतीक श्रेष्ठ है / आपकी रचना की मैं सराहना करता हुं.
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    Manjit Singh
    26 जुलाई 2020
    prernadayak