आज उसके यहाँ छोटी सी पार्टी है। जन्मदिन है उसका और दो दिन पहले उसे अप्वान्ट्मेंट लेटर भी मिल गया था। सो जन्मदिन की कम और नौकरी मिलने की खुशी में ज्यादा , पार्टी की जा रही है। कुछ उसके मित्र हैं, कुछ ...
हृदय छूने वाली कहानी अर्चना जी।हर स्त्री की कहानी है यह।
इसके लिए साधुवाद।लेकिन अपने अस्तित्व, अपने स्वाभिमान के लिये देह का सौदा इतनी कमजोर नहीं हैं हमारे संस्कार।स्त्री तो संस्कारों की जननी है।एक पुरुष के सामने अपना स्वाभिमान बनाये रखने के लिए किसी दूसरे पुरुष को अपना शरीर सौंप देना माफ कीजिएगा अच्छा नहीं लगा।और क्या पता वह दूसरा पुरुष इसका फायदा नहीं उठायेगा।स्त्री इतनी सशक्त है कि वह अपने स्वाभिमान को बनाए रखते हुए हर वो मंजिल पा सकती है जिसकी वह चाह रखती है।पुरुष की जननी भी स्त्री ही है।माँ हीअफने पुत्र को स्त्री का
मान रखना सिखा सकती है।
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kahani ka pratyek shabd ek kadvi hakikat se purna hai par kya iss sachhai ka samna karne ke liye naitikta ko apne jeevan se dur kar dena chahiye ya nahi, ye shayad paristhitiyon par nirbhar hai, jeevan ki kathinta ko prastut karti kahani.....
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kahani bahut achchhi h, bahut hi khubsurti se un baton ko kaha h jo shayed jyadatar mahilaye kahana chahti h. Pariwar aur Bachchon k liye apni ichchhaon aur sapno ko chod dena tab taklif deta h jahan uske tyag ka samman na ho.
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