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अंतिम संस्कार

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4.6

अचानक ही डूबते हुए सूर्य की रश्मियों ने करवट ली तो सहसा ही वृक्षों के सहारे से बहती हुई नदी की धाराओं में बहते हुए सोने की चमकती हुई लकीरें सी बिछ्तीं चलीं गईं. शाम डूब रही थी. डूबती हुई इस शाम ...