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अंततोगत्वा

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आज से लगभग चार माह पूर्व अखबार में एक दिल दहला देने वाली खबर पढ़ी थी। मुंबई के ऐरोली की ये घटना है।उसी घटना को आज एक कहानी के रूप में आप सभी के समक्ष प्रस्तुत कर रही हूँ।                 "शमिता! ...

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लेखक के बारे में

बस अच्छा साहित्य पढ़ना पसंद है,,,,और कोशिश है.....कुछ ऐसा सार्थक लिखने की जिससे समाज को एक दिशा मिल सके..... ईश्वर से यही प्रार्थना करती हूँ कि मेरी लेखनी को इतना सशक्त करें कि मैं आगे भी यूँ ही अपना लेखन जारी रख सकूँ।

समीक्षा
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    Aditi Tandon
    04 दिसम्बर 2021
    मुझे लगता दी कि दोनों पक्ष की गलती है , माता पिता को जबरदस्ती अपने सपने बच्चों पर नहीं लादने चाहिए और न ही हर समय टोकते रहना चाहिए बल्कि बच्चों को भी मौका देना चाहिए अपने मन से कुछ करने का और गलती बच्चों की भी है कि मोबाइल का हद से ज्यादा इस्तेमाल उन्हें नकारात्मक बना रहा है , उग्र बना रहा है बहुत अच्छा है कि आपने ये कहानी साझा की , सबको इससे सीख लेनी चाहिए 🙏🙏🙏
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    sushma gupta
    04 दिसम्बर 2021
    ओहहह बहुत ही दुखद, लेकिन...माँ ही बेटी को लेकर पुलिस स्टेशन पहुंच गयी...इतनी उग्रता..., एक माँ होने के नाते मुझे ये लगा कि शमिता ने अपने भविष्य के लिए क्या प्लानिंग की है माँ ने शमिता से इस बारे में कभी बात ही नहीं की, एक फाॅर्म भरवा दिया जो शायद शमिता की रुचि का नहीं था... इस घटना में मैं माँ को पूर्णतः दोषी मानती हूँ माँ ने ही बेटी से सामंजस्य नहीं बिठाया... उसे ठीक से कैरियर का महत्व नहीं समझाया... ये कहानी माँओं के लिए सबक है अपनी बात समझाने से पहले बच्चों के मन की बात समझना बहुत ज़रूरी है..कमी हो तो भी तुलना तो कभी नहीं करनी चाहिए..दोस्ताना व्यवहार के बिना बच्चों को अपनी बात मनवाना बहुत मुश्किल है... अनुपमा जी इस कहानी को बिल्कुल मत हटाइयेगा 🙏 अनुपमा जी आपकी ये कहानी मैंने अपनी किशोर बेटी को भी पढ़ाई उसने कहा कि शमिता को खुद समझना चाहिए था कि आजकल लड़की का अपने पैरों पर खड़े होना कितना ज़रुरी है, बेटी ने एक बात और कही कि बच्चे बड़े चालाक होते हैं मेहमानों के सामने पढ़ाई करने लगते हैं, मुझे भी याद आया कि मैंने बच्चों को समझा रखा था कि पापा के काम से वापस आने पर उन्हें पढ़ाई करते हुए दिखा करो ताकि पापा को अच्छा लगे कि बच्चे पढ़ने में मन लगाते हैं .. 😊
  • author
    Sushma Sharma
    14 दिसम्बर 2021
    mujhe jo lagta hai , यह एक अभाव होता है जीवन में , प्रेम का कहो या धन का कहो , अपेक्षाओं का जहां गला घुटने लगता है , व्यक्ति के अंदर धीरे धीरे यह बात घर कर जाती है और वह असली जीवन को नकार कर कल्पना की दुनियां में रहने लगता है, स्वयं से उसका नियंत्रण खो जाता है , उसे सिर्फ और सिर्फ़ अपनी कामनाएं , लालसाएं ही दिखाई देती हैं हर तरफ़ ! व्यवहार में नकारात्मकता आती जाती है , उग्रता आती जाती है जो एक बीमारी का रूप धारण कर लेती है ! मां के साथ क्या रहा होगा जो अपनी बेटी को हर हाल में dr hi देखना चाहती थी, व्यवहार तो नॉर्मल नहीं था, बच्चे पहले यह सब कुछ चुपचाप सहन कर लेते थे, लेकिन आज के बच्चे हर बात में आगे हैं उनके अंदर भय झिझक नहीं है , एक हद तक मोबाइल टीवी का भी योगदान है परंतु बड़ों का व्यवहार और संस्कारों को नकारा नहीं जा सकता उनकी किसी भी भूमिका के लिए ! बच्चों को समय चाहिए होता है, साधन चाहिए होते हैं और एक मधुर व्यवहार भी ! जिनकी पूर्ति करना बहुत आसान नहीं है , यहां हमें समय और संस्कारों को विशेष महत्व देना होगा , बच्चों को शुरू से शिक्षा देनी होगी , चीजों की अहमियत बतानी समझानी होगी , जो कि हम नहीं कर पा रहे। हम समाज में अपनी झूठी शान दिखाने के लिए बहुत गलत ढर्रे पर चल रहे हैं ! और जब हम पीछे रह जाते हैं तो कुंठहाग्रस्त होकर कुछ से कुछ कर बैठते हैं ,जो इस कहानी में हुआ ! हमारे द्वारा निर्मित हालात उत्तरदाई हैं इस सभी के लिए। न ही बच्चे न मोबाइल !
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    Aditi Tandon
    04 दिसम्बर 2021
    मुझे लगता दी कि दोनों पक्ष की गलती है , माता पिता को जबरदस्ती अपने सपने बच्चों पर नहीं लादने चाहिए और न ही हर समय टोकते रहना चाहिए बल्कि बच्चों को भी मौका देना चाहिए अपने मन से कुछ करने का और गलती बच्चों की भी है कि मोबाइल का हद से ज्यादा इस्तेमाल उन्हें नकारात्मक बना रहा है , उग्र बना रहा है बहुत अच्छा है कि आपने ये कहानी साझा की , सबको इससे सीख लेनी चाहिए 🙏🙏🙏
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    sushma gupta
    04 दिसम्बर 2021
    ओहहह बहुत ही दुखद, लेकिन...माँ ही बेटी को लेकर पुलिस स्टेशन पहुंच गयी...इतनी उग्रता..., एक माँ होने के नाते मुझे ये लगा कि शमिता ने अपने भविष्य के लिए क्या प्लानिंग की है माँ ने शमिता से इस बारे में कभी बात ही नहीं की, एक फाॅर्म भरवा दिया जो शायद शमिता की रुचि का नहीं था... इस घटना में मैं माँ को पूर्णतः दोषी मानती हूँ माँ ने ही बेटी से सामंजस्य नहीं बिठाया... उसे ठीक से कैरियर का महत्व नहीं समझाया... ये कहानी माँओं के लिए सबक है अपनी बात समझाने से पहले बच्चों के मन की बात समझना बहुत ज़रूरी है..कमी हो तो भी तुलना तो कभी नहीं करनी चाहिए..दोस्ताना व्यवहार के बिना बच्चों को अपनी बात मनवाना बहुत मुश्किल है... अनुपमा जी इस कहानी को बिल्कुल मत हटाइयेगा 🙏 अनुपमा जी आपकी ये कहानी मैंने अपनी किशोर बेटी को भी पढ़ाई उसने कहा कि शमिता को खुद समझना चाहिए था कि आजकल लड़की का अपने पैरों पर खड़े होना कितना ज़रुरी है, बेटी ने एक बात और कही कि बच्चे बड़े चालाक होते हैं मेहमानों के सामने पढ़ाई करने लगते हैं, मुझे भी याद आया कि मैंने बच्चों को समझा रखा था कि पापा के काम से वापस आने पर उन्हें पढ़ाई करते हुए दिखा करो ताकि पापा को अच्छा लगे कि बच्चे पढ़ने में मन लगाते हैं .. 😊
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    Sushma Sharma
    14 दिसम्बर 2021
    mujhe jo lagta hai , यह एक अभाव होता है जीवन में , प्रेम का कहो या धन का कहो , अपेक्षाओं का जहां गला घुटने लगता है , व्यक्ति के अंदर धीरे धीरे यह बात घर कर जाती है और वह असली जीवन को नकार कर कल्पना की दुनियां में रहने लगता है, स्वयं से उसका नियंत्रण खो जाता है , उसे सिर्फ और सिर्फ़ अपनी कामनाएं , लालसाएं ही दिखाई देती हैं हर तरफ़ ! व्यवहार में नकारात्मकता आती जाती है , उग्रता आती जाती है जो एक बीमारी का रूप धारण कर लेती है ! मां के साथ क्या रहा होगा जो अपनी बेटी को हर हाल में dr hi देखना चाहती थी, व्यवहार तो नॉर्मल नहीं था, बच्चे पहले यह सब कुछ चुपचाप सहन कर लेते थे, लेकिन आज के बच्चे हर बात में आगे हैं उनके अंदर भय झिझक नहीं है , एक हद तक मोबाइल टीवी का भी योगदान है परंतु बड़ों का व्यवहार और संस्कारों को नकारा नहीं जा सकता उनकी किसी भी भूमिका के लिए ! बच्चों को समय चाहिए होता है, साधन चाहिए होते हैं और एक मधुर व्यवहार भी ! जिनकी पूर्ति करना बहुत आसान नहीं है , यहां हमें समय और संस्कारों को विशेष महत्व देना होगा , बच्चों को शुरू से शिक्षा देनी होगी , चीजों की अहमियत बतानी समझानी होगी , जो कि हम नहीं कर पा रहे। हम समाज में अपनी झूठी शान दिखाने के लिए बहुत गलत ढर्रे पर चल रहे हैं ! और जब हम पीछे रह जाते हैं तो कुंठहाग्रस्त होकर कुछ से कुछ कर बैठते हैं ,जो इस कहानी में हुआ ! हमारे द्वारा निर्मित हालात उत्तरदाई हैं इस सभी के लिए। न ही बच्चे न मोबाइल !