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अंतर्यात्रा

4.1
382

पंचतत्वों से बनी मेरी काया में किराये पर रहती मेरी आत्मा बहिर्यात्रा से ऊब कर अंतर्यात्रा का संकल्प करती हैै काया के साथ आवारगी करते करते थक चुकी आत्मा तनिक विश्राम करना चाहती है अंतर्मन में ...

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लेखक के बारे में

ड़ा मीरा रामनिवास (रिटायर्ड भारतीय पुलिस सेवा अधिकारी) लेखन, भ्रमण, ट्रेकिंग में रूचि ।बागवानी , संगीत श्रवण, साहित्य पठन, जैसे शौक हैं प्रकृति को निहारना, बच्चों के साथ बातें करना , बुजुर्गों के साथ बैठना ,स्कूल कालेज में सम सामयिक विषयों पर व्याख्यान देना अच्छा लगता है। सामाजिक मूल्य और प्रकृति मेरे लेखन को प्रभावित करते हैं ।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Satyendra Kumar Upadhyay
    23 अक्टूबर 2015
    मेहसूस जैसे शब्द ही पर्याप्त हैं प्रशंसा के लिए । राष्ट्र भाषा का अनादर करती एक अत्यंत सारहीन व अप्रासांगिक कविता है ।
  • author
    Manjit Singh
    03 सितम्बर 2020
    आपको इस कविता पर राष्ट्रीय पुरस्कार मिलना चाहिए।आपको कोटी कोटि नमन।भावनाएं बिल्कुल चितौड़गढ़ की मीरा बाई जैसी है
  • author
    Neha Sharma
    25 जून 2019
    बहुत खूब।शुभकामनाएं। कृपया मेरी रचना मन बावरा पर अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया देकर अनुगृहित करे।
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    Satyendra Kumar Upadhyay
    23 अक्टूबर 2015
    मेहसूस जैसे शब्द ही पर्याप्त हैं प्रशंसा के लिए । राष्ट्र भाषा का अनादर करती एक अत्यंत सारहीन व अप्रासांगिक कविता है ।
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    Manjit Singh
    03 सितम्बर 2020
    आपको इस कविता पर राष्ट्रीय पुरस्कार मिलना चाहिए।आपको कोटी कोटि नमन।भावनाएं बिल्कुल चितौड़गढ़ की मीरा बाई जैसी है
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    Neha Sharma
    25 जून 2019
    बहुत खूब।शुभकामनाएं। कृपया मेरी रचना मन बावरा पर अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया देकर अनुगृहित करे।