मन मेरा अंत से आरंभ की ओर चला हर द्वंद से मन मुक्त हो चला अंतर्द्वंदों का शोर भी अब थम चला बस मन मेरा अंत से आरंभ की ओर चला न खोने का दुःख न पाने का सुख हर तरह की चाह से मन मुक्त हो चला मान अपमान ...
बेहद ही शानदार रचना है आपकी। बहुत ही गजब लिखा आपने। आगे भी पढ़ने की इच्छा जागृत हो गई है।
कृपया मेरी भी रचना पढ़िएगा आशा है आपको पसंद आयेगी।
साथ ही आप रचना पढ़कर पुरस्कार भी जीत सकते हैं। आपको कातिल का नाम बताना होगा।
तो plz पढ़िए और पुरस्कार में हिस्सा लीजिए
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