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अंधेरे में गुम गद्दार

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वह जो कसम खाकर भी मुड़ गए , जिनके शब्दों में जहर भर गया। जो वतन की मिट्टी को बेच आए , जो हर चेहरे पर नकाब धर गए । वो अंधेरे की ओट में छिपे हैं , जैसे सच से भागते साए । जो दीप बुझाए अपनों ने ही  , उस ...

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लेखक के बारे में
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Divya Divylata

जन्मभूमि जमालपुर मुंगेर बिहार कर्मभूमि गाजियाबाद उत्तर प्रदेश , मैं एक वर्किंग वुमन और हाउस वाइफ भी हूं। मेरी उन्नीस साल की बेटी जब ब्रेन डेड हो गई तब मैंने उनकी सारे अंग एम्स अस्पताल दिल्ली में दान कर दिए, जिस वजह से मुझे अरविंद केजरीवाल और स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडवीया ने सम्मानित किया। मैंने अपनी बेटी को बचाने के लिए मकान दुकान और जेवर बेच दिये। छः साल ईलाज कराने के बाद भी बिटिया नहीं बच पायी । मैं अपनी आंसुओं को किसी को नहीं दिखाती। मैं अपनी दर्द को कविता और ग़ज़ल के रूप में लिखतीं हूं। प्लीज आप मेरा साथ दिजिए, और मुझे फालो किजिए।

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Rakesh Chaurasia
    02 मई 2025
    वाह बिल्कुल सही लिखा है आपने। जो आज छिपे हैं अंधेरे में कल उजाले में आएंगे।
  • author
    Chhotelal Shukla "पंकज"
    07 मई 2025
    वास्तविकता को उजागर करती हुई बहुत ही सुंदर रचना है आपकी बहन
  • author
    Yashwant Kumar Garg
    03 मई 2025
    बहुत ही बेहतरीन सार्थक भाव सृजन 🙏🙏
  • author
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  • author
    Rakesh Chaurasia
    02 मई 2025
    वाह बिल्कुल सही लिखा है आपने। जो आज छिपे हैं अंधेरे में कल उजाले में आएंगे।
  • author
    Chhotelal Shukla "पंकज"
    07 मई 2025
    वास्तविकता को उजागर करती हुई बहुत ही सुंदर रचना है आपकी बहन
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    Yashwant Kumar Garg
    03 मई 2025
    बहुत ही बेहतरीन सार्थक भाव सृजन 🙏🙏