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अंधानुकरण पश्चिम का छोड़ो

4.7
268

अंधानुकरण पश्चिम का छोड़ो, नहीं अपनी संस्कृति से मुँह मोड़ो। बिगड़ गये हैं खान पान, बढ़ गई हैं उच्छ्खलतायें। बढ़ गये हैं समाज में पाप कर्म, बलात्कार सी घटनायें। जो करते नारी को शर्मसार, ऐसे पापिष्ठों ...

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लेखक के बारे में

मानव मन भी भावनाओं का सागर है, जिसमें भाव ठाठें मारते रहते हैं। उनमें उद्देलन होता रहता है तथा तरंगें पैदा होती रहती हैं। औरों की तरह मेरे मन में भी भाव तरंगित होते रहते हैं।इन्हीं तरंगित भाव को समेटकर टूटे फूटे शब्दों से विन्यास कर कविता के रूप में परिवर्तित करने का प्रयास करता हूँ। मेरा यह कार्य स्वयं को कवि के रूप में स्थापित करना नहीं है वरन उम्र के इस पड़ाव में समय का सदुपयोग और अपने भावों को साझा करना है इन्हीं भावों को रचनाओं के रूप में बड़ी धृष्टता और क्षमा याचना के साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ।

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Sweta Pant "Seemu"
    05 फ़रवरी 2023
    ati sunder 👌👌 Can you please read my stories and poems and please give me support.
  • author
    Apurva Jain
    27 सितम्बर 2024
    बिलकुल सही अभिव्यक्ति आज की विकृति पर
  • author
    BEPARWAH
    07 मई 2018
    🙏प्रणाम हैं मान्यवर आपको।
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  • author
    Sweta Pant "Seemu"
    05 फ़रवरी 2023
    ati sunder 👌👌 Can you please read my stories and poems and please give me support.
  • author
    Apurva Jain
    27 सितम्बर 2024
    बिलकुल सही अभिव्यक्ति आज की विकृति पर
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    BEPARWAH
    07 मई 2018
    🙏प्रणाम हैं मान्यवर आपको।