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अनभिज्ञ अभिलाषी.... ( 1 )

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मेरे आकिंचिन जीवन मेँ,        ज्योति किरण बिखरा दी.. ओ !दीपशिखा,, अनुरागी.. ऐसा अनुपम मेल कहाँ,       आकर्षण, अर्चन, अर्पण का. कैसा? चंचल,, उन्माद करे,     उतसर्ग, स्वयं के जीवन का. कैसे  ...

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लेखक के बारे में
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Krishna Shukla

कृष्णा शुक्ला हिंदी से मास्टर डिग्री बीएड. गृहणी शौक कविता भजन लिखना ख़ुश रहना. और दूसरों की खुशी. के लिए हर सम्भव प्रयास करना. घर की जुम्मेदारी से निबृत होकर अब पुनः अपने शौक को लेकर समय का सदुपयोग करना

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Krishna Kumar "'प्रशांत'"
    19 नवम्बर 2019
    बहुत खूबसूरत रचना ।
  • author
    Vijaykant Verma
    19 नवम्बर 2019
    वाह, बहुत खूब..
  • author
    पूजा मणि
    18 नवम्बर 2019
    बहुत सुन्दर
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    Krishna Kumar "'प्रशांत'"
    19 नवम्बर 2019
    बहुत खूबसूरत रचना ।
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    Vijaykant Verma
    19 नवम्बर 2019
    वाह, बहुत खूब..
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    पूजा मणि
    18 नवम्बर 2019
    बहुत सुन्दर