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अनंत

4.6
9884

तारों की छाँव में देर रात तक छत पर बैठ रात के दूसरे पहर की प्रतीक्षा करती जब बाँसुरी की मनमोहिनी तान गहरी खामोशी को भेदती हुई उस तक पहुँचती। उसकी विह्वलता वैसी ही होती जैसे कस्तूरी की तलाश में ...

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लेखक के बारे में

खुद से करती हूँ खुद की बातें, मैं खुद अपनी हमसफर हूँ।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    आकाश
    29 जून 2018
    दिल के जज्बातों को आप ने कागज पर उतार दिया ...शायद आप ही कि कहानी हो जैसे.
  • author
    सचिन कंसल
    18 जनवरी 2018
    अनंत अर्थात अविरल, निरन्तर जिसका कोई अंत ही न हो रागिनी अर्थात स्वरांजलि , कहते हैं कि हम कुछ भी बोलते हैं तो वो आवाज अथाह काल तक अनन्त में घूमती रहती है इसलिए दोनों पास होकर भी सदैव दूर ही रहते हैं, आपकी ये कृति जयशंकर प्रसाद के विरह के उपन्यासों से मेल खाती हुई कृति है
  • author
    Dev Lal Gurjar "Bhatia"
    01 सितम्बर 2019
    बहुत शानदार कृति लिखी है प्रकृति चित्र भी मनोरम छटा के....मानौ सत्य से परे हो...
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    आकाश
    29 जून 2018
    दिल के जज्बातों को आप ने कागज पर उतार दिया ...शायद आप ही कि कहानी हो जैसे.
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    सचिन कंसल
    18 जनवरी 2018
    अनंत अर्थात अविरल, निरन्तर जिसका कोई अंत ही न हो रागिनी अर्थात स्वरांजलि , कहते हैं कि हम कुछ भी बोलते हैं तो वो आवाज अथाह काल तक अनन्त में घूमती रहती है इसलिए दोनों पास होकर भी सदैव दूर ही रहते हैं, आपकी ये कृति जयशंकर प्रसाद के विरह के उपन्यासों से मेल खाती हुई कृति है
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    Dev Lal Gurjar "Bhatia"
    01 सितम्बर 2019
    बहुत शानदार कृति लिखी है प्रकृति चित्र भी मनोरम छटा के....मानौ सत्य से परे हो...