तारों की छाँव में देर रात तक छत पर बैठ रात के दूसरे पहर की प्रतीक्षा करती जब बाँसुरी की मनमोहिनी तान गहरी खामोशी को भेदती हुई उस तक पहुँचती। उसकी विह्वलता वैसी ही होती जैसे कस्तूरी की तलाश में ...
अनंत अर्थात अविरल, निरन्तर जिसका कोई अंत ही न हो रागिनी अर्थात स्वरांजलि , कहते हैं कि हम कुछ भी बोलते हैं तो वो आवाज अथाह काल तक अनन्त में घूमती रहती है इसलिए दोनों पास होकर भी सदैव दूर ही रहते हैं, आपकी ये कृति जयशंकर प्रसाद के विरह के उपन्यासों से मेल खाती हुई कृति है
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अनंत अर्थात अविरल, निरन्तर जिसका कोई अंत ही न हो रागिनी अर्थात स्वरांजलि , कहते हैं कि हम कुछ भी बोलते हैं तो वो आवाज अथाह काल तक अनन्त में घूमती रहती है इसलिए दोनों पास होकर भी सदैव दूर ही रहते हैं, आपकी ये कृति जयशंकर प्रसाद के विरह के उपन्यासों से मेल खाती हुई कृति है
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