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अमृता प्रीतम की रचना पर समीक्षा ( मैं तुम्हें फ़िर मिलूंगी )

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हाँ सच तो कहा था उसने मैं तुम्हें फ़िर मिलूंगी ज़िन्दगी में कितने ही उतार चढ़ाव आएँगे किसी भी पढ़ाव में मिलूंगी मग़र मैं तुम्हें फ़िर मिलूंगी ज़िन्दगी की हर सुबह में सूरज की किरणों में दोपहर की तपिश में ...

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लेखक के बारे में
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Meena (Sumi) Rawlani

क्यों तुम पहचान कर भी अनजान बने रहते हो दोस्ती का मुखौटा पहनकर दुश्मनों सा व्यवहार करने लगते हो ll शायद यही होती है दोस्ती ऐसी कहलाती है दोस्ती पहले दोस्त बनाते हो फिर दुश्मन बनकर पीठ में खंजर घोपने लगते हो l Sumi

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Sandip Sharmaz . Sharmaz "Lucky"
    28 മെയ്‌ 2023
    कमाल। जयश्रीकृष्ण आदरणीय जयश्रीकृष्ण जी।
  • author
    N Chow
    27 മെയ്‌ 2023
    बहुत खूब
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    Sandip Sharmaz . Sharmaz "Lucky"
    28 മെയ്‌ 2023
    कमाल। जयश्रीकृष्ण आदरणीय जयश्रीकृष्ण जी।
  • author
    N Chow
    27 മെയ്‌ 2023
    बहुत खूब