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अली मंजिल

4.6
4228

‘अली मंजिल’ के आखिरी वारिस जनाब मंजूर अली की उम्र सत्तर पार पहुंच चुकी थी। सिर-दाढ़ी के बाल सन जैसे सफेद हो चुके थे। आंखों पर पावर के चश्मे के बावजूद रोशनी धुंधली पड़ चुकी थी। दूर की चीजों को पहचानना ...

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लेखक के बारे में
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अवधेश प्रीत
समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    nidhi Bansal "Nidhi"
    13 സെപ്റ്റംബര്‍ 2018
    हर इंसान जब अपना घर बनाता है तो उस घर के हर हिस्से मे उसके सपने दिखते है लेकिन जब कोई ओर उस मकान मे रहता है तो उस के लिये उन सपनो का,उन हिस्सो का कोई मतलब नही रह जाता।भावपूर्ण कहानी।
  • author
    सीतेश कुमार
    22 ഒക്റ്റോബര്‍ 2017
    आंखे नम हो गइं, कलेजा भर आया है मन कर रहा है अली साहब को वापस बुला लाऊं उनके घर😓
  • author
    पवनेश मिश्रा
    21 ഏപ്രില്‍ 2020
    उम्दा लेखन, काबिल - ए- रश्क किस्सा 🙏🌹🙏,
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    nidhi Bansal "Nidhi"
    13 സെപ്റ്റംബര്‍ 2018
    हर इंसान जब अपना घर बनाता है तो उस घर के हर हिस्से मे उसके सपने दिखते है लेकिन जब कोई ओर उस मकान मे रहता है तो उस के लिये उन सपनो का,उन हिस्सो का कोई मतलब नही रह जाता।भावपूर्ण कहानी।
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    सीतेश कुमार
    22 ഒക്റ്റോബര്‍ 2017
    आंखे नम हो गइं, कलेजा भर आया है मन कर रहा है अली साहब को वापस बुला लाऊं उनके घर😓
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    पवनेश मिश्रा
    21 ഏപ്രില്‍ 2020
    उम्दा लेखन, काबिल - ए- रश्क किस्सा 🙏🌹🙏,