मित्रों आज राधा अष्टमी के पावन अवसर पर परम धाम निवासिनी श्री राधा जु के लिए कुछ लिख रही हूँ लाडली राधाजू से प्रार्थना है कि वे मेरे शब्दों मे अपनी कृपा का वरदान दे ताकि मैं अपनी क्षुद्र ...
आदरणीया, इस रचना मे विभिन्न तथ्यों का उल्लेख है जो स्वयं मे एक दूसरे के विरोधाभासी है,,, राधा के जन्म और बिबाह का भी। पुराणों मे बहुत ऐसे प्रसंग है जो कभी मेल नहीं खाते। जिसने जो चाहा लिख दिया,, रामायण मे भी लेखकों के आधार पर भिन्नता देखी गयी है। प्रसंगों को अपने अनुरूप सिद्ध करने की भी खूब व्यवस्था कर दी गयी है, इसीलिए पुराणो को सर्व सम्मत नहीं माना जाता।
मै सब कुछ मान रहा हूँ, समझ रहा हूँ,,,
जब ब्रह्मा जी ने बिबाह करा ही दिया था, तो फिर उसे अपने साथ महल मे स्वीकार करने मे क्या परेशानी हो सकती थी,,, आप इस दर्द को क्या अनुभव नही करती , जब शादी हो जाये और पति पत्नी के रुप मे वरण न करें। राधा की शादी फिर हुई, और वह पर पुरुष को सौंप दी गयी, यह कितना उचित है,,, हृदय किसी और को, और शरीर किसी और को,,, नारी उस हालत मे अविवाहित ही रह जाती, ,,, कृष्ण की उपेक्षा है,,, बातें इसे ढकने के लिए, चाहे जितनी बना दी जाये। कृष्ण के महल मे राधा की परीक्षा, ,,, क्या यह होना उचित था,,, राधा हर जगह मानसिक आघात सहने को विवस हुई है,,, यदि वह प्रेम मे खरी उतरी तो चले उसी क्षण महल मे स्थान मिलना चाहिए था, परीक्षा भी और सफलता पर तिरस्कार भी,,, अच्छा धार्मिक न्याय है। आपने पुराणों के प्रसंगों के आधार पर जो भी लिखा बहुत सुन्दर और अच्छा है, मगर दिल से इस पर कभी विचार करें,,, बहुत बहुत बधाइयाँ आपको, हार्दिक शुभकामनाएं भी आदरणीया,,, किसी भी प्रसंग को पढ चिंतन मंथन भी आवश्यक होता है,, अंधदौड से बचने की चेष्टा होनी चाहिए। सती प्रथा मे यही धार्मिक महिमा मंडित कर जिंदा जलने को बिवस किया जाता था,, नियम और प्रसंग मे समानता होनी चाहिए। बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया, यदि मेरी बातें ठीक न लगे तो मुझे जरूर क्षमा करेंगी,, क्योंकि मै भी आस्तिक हूँ, मगर सोच कुछ अलग है अंधविश्वास के प्रतिकूल,, शुक्रिया।
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आदरणीया, इस रचना मे विभिन्न तथ्यों का उल्लेख है जो स्वयं मे एक दूसरे के विरोधाभासी है,,, राधा के जन्म और बिबाह का भी। पुराणों मे बहुत ऐसे प्रसंग है जो कभी मेल नहीं खाते। जिसने जो चाहा लिख दिया,, रामायण मे भी लेखकों के आधार पर भिन्नता देखी गयी है। प्रसंगों को अपने अनुरूप सिद्ध करने की भी खूब व्यवस्था कर दी गयी है, इसीलिए पुराणो को सर्व सम्मत नहीं माना जाता।
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जब ब्रह्मा जी ने बिबाह करा ही दिया था, तो फिर उसे अपने साथ महल मे स्वीकार करने मे क्या परेशानी हो सकती थी,,, आप इस दर्द को क्या अनुभव नही करती , जब शादी हो जाये और पति पत्नी के रुप मे वरण न करें। राधा की शादी फिर हुई, और वह पर पुरुष को सौंप दी गयी, यह कितना उचित है,,, हृदय किसी और को, और शरीर किसी और को,,, नारी उस हालत मे अविवाहित ही रह जाती, ,,, कृष्ण की उपेक्षा है,,, बातें इसे ढकने के लिए, चाहे जितनी बना दी जाये। कृष्ण के महल मे राधा की परीक्षा, ,,, क्या यह होना उचित था,,, राधा हर जगह मानसिक आघात सहने को विवस हुई है,,, यदि वह प्रेम मे खरी उतरी तो चले उसी क्षण महल मे स्थान मिलना चाहिए था, परीक्षा भी और सफलता पर तिरस्कार भी,,, अच्छा धार्मिक न्याय है। आपने पुराणों के प्रसंगों के आधार पर जो भी लिखा बहुत सुन्दर और अच्छा है, मगर दिल से इस पर कभी विचार करें,,, बहुत बहुत बधाइयाँ आपको, हार्दिक शुभकामनाएं भी आदरणीया,,, किसी भी प्रसंग को पढ चिंतन मंथन भी आवश्यक होता है,, अंधदौड से बचने की चेष्टा होनी चाहिए। सती प्रथा मे यही धार्मिक महिमा मंडित कर जिंदा जलने को बिवस किया जाता था,, नियम और प्रसंग मे समानता होनी चाहिए। बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया, यदि मेरी बातें ठीक न लगे तो मुझे जरूर क्षमा करेंगी,, क्योंकि मै भी आस्तिक हूँ, मगर सोच कुछ अलग है अंधविश्वास के प्रतिकूल,, शुक्रिया।
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