अलबत्ता कोई बात न थी मैं समझा न सका तुम समझ न पाए अलबत्ता कोई बात न थी। मैं चल न सका तुम रुक न सके अलबत्ता कोई बात न थी।। राहों के क़दमों में दीप जलाते क्यों हो ऐसी कोई बात न थी। जहां रुक जाएं ...
अपनी रचनाओं में रोज़ मैं अपने बारे में लिख रहा हूं। इसके अलावा और क्या लिखूं? मुझे फिलहाल कुछ नहीं सूझ रहा। मेरे ख्याल से मेरी रचनाएं ही मेरा वास्तविक परिचय है।
सारांश
अपनी रचनाओं में रोज़ मैं अपने बारे में लिख रहा हूं। इसके अलावा और क्या लिखूं? मुझे फिलहाल कुछ नहीं सूझ रहा। मेरे ख्याल से मेरी रचनाएं ही मेरा वास्तविक परिचय है।
रिपोर्ट की समस्या
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