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अलबत्ता कोई बात न थी

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अलबत्ता कोई बात न थी मैं समझा न सका तुम समझ न पाए अलबत्ता कोई बात न थी। मैं चल न सका तुम रुक न सके अलबत्ता कोई बात न थी।। राहों के क़दमों में दीप जलाते क्यों हो ऐसी कोई बात न थी। जहां रुक जाएं ...

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लेखक के बारे में
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महेश समीर

अपनी रचनाओं में रोज़ मैं अपने बारे में लिख रहा हूं। इसके अलावा और क्या लिखूं? मुझे फिलहाल कुछ नहीं सूझ रहा। मेरे ख्याल से मेरी रचनाएं ही मेरा वास्तविक परिचय है।

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Vinay Sinha
    31 जुलाई 2021
    क्या खूब लिखा है आपने
  • author
    Sandhya Rani
    31 जुलाई 2021
    बहुत सुन्दर, बहुत प्रवाह,भाव और भाषा का ...👌
  • author
    Jitendra Mishra
    31 जुलाई 2021
    कोई बात ना थी बाह बहुत अच्छा लिखा आपने
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Vinay Sinha
    31 जुलाई 2021
    क्या खूब लिखा है आपने
  • author
    Sandhya Rani
    31 जुलाई 2021
    बहुत सुन्दर, बहुत प्रवाह,भाव और भाषा का ...👌
  • author
    Jitendra Mishra
    31 जुलाई 2021
    कोई बात ना थी बाह बहुत अच्छा लिखा आपने