अहम् ब्रह्मास्मि ….…….……. हे मानव, तुम मानव हो या कि ब्रह्म जब तुम ब्रह्म लगे तो सारी आस्थाएं , सारे विश्वास तुम्हारे चरणों में रख दिए यह सोचकर कि ब्रह्म तो सारे ब्रह्मांड के लिए है, कभी व्यक्त ...
शब्दों की दुनिया में विचरण कर कुछ रचना लेकिन निहायत ही सलीके और अनुशासित तरीके से......रचनात्मक दृष्टि से तो मेरा यही परिचय है । वैसे मैं डॉ.संतोष उपाध्याय के नाम से जानी जाती हूं। कॉलेज में सहायक आचार्य के रूप में कार्यरत हूं।ज्यादा तो नहीं एक दो पत्रिकाओं में कहानी प्रकाशित हुई है। बस लिखती हूं.....
सारांश
शब्दों की दुनिया में विचरण कर कुछ रचना लेकिन निहायत ही सलीके और अनुशासित तरीके से......रचनात्मक दृष्टि से तो मेरा यही परिचय है । वैसे मैं डॉ.संतोष उपाध्याय के नाम से जानी जाती हूं। कॉलेज में सहायक आचार्य के रूप में कार्यरत हूं।ज्यादा तो नहीं एक दो पत्रिकाओं में कहानी प्रकाशित हुई है। बस लिखती हूं.....
आप की रचना पढ़ी सुन्दर लिखा है आप ने मैं भी एक धारावाहिक शुरू कर रहा हु अतः आप भी मेरा लिखा पढे और अपनी समीक्षा दे
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