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अधूरी ख्वाहिश

3.8
1059

हर हर ख्वाहिश अधुरी रह गई मेरी, वो ख्वाब अधुरे छूटे सारे। क्यों बन के सपना रह गई तू, तू ख्वाहिश अधुरी इस जीवन की। है यही आखिरी ख्वाहिश हमारी, बस यही तमन्ना बाकी है। तू होना उस पल साथ में मेरे, जब ...

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लेखक के बारे में
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प्रताप सिंह
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Satyendra Kumar Upadhyay
    16 अक्टूबर 2015
    राष्ट्र भाषा को पूर्ण रूपेण न अपनाती व पूर्ण ज्ञान का अभाव दर्शाती है ।
  • author
    गंगा राम
    01 सितम्बर 2024
    शानदार. कृपया मेरी रचना को पढ़ें.
  • author
    Panchanana Sahu
    08 अप्रैल 2019
    बहुत खूब
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Satyendra Kumar Upadhyay
    16 अक्टूबर 2015
    राष्ट्र भाषा को पूर्ण रूपेण न अपनाती व पूर्ण ज्ञान का अभाव दर्शाती है ।
  • author
    गंगा राम
    01 सितम्बर 2024
    शानदार. कृपया मेरी रचना को पढ़ें.
  • author
    Panchanana Sahu
    08 अप्रैल 2019
    बहुत खूब