अधूरा सपना आँखों ने फिर सपना देखा सपने में कोई अपना देखा बरबस ही आँखें भर आई भूली बिसरी याद फिर आई वही पुराना ताना बाना मुड़ कर उन गलियों में जाना उसे देखना नज़र चुरा के उसका लजाना नज़र झुका ...
लोग क्या सोचेंगे सोचकर अगर कलम उठाएंगे ...
ज़िंदगी भर हम कभी भी सच नहीं लिख पाएंगे ...
अशोक "अजनबी"
सभी मित्रों व पाठकों का आभार जिन्होंने मेरी रचनाऐं पढ़ी व समीक्षा की 🙏🙏🙏
सारांश
लोग क्या सोचेंगे सोचकर अगर कलम उठाएंगे ...
ज़िंदगी भर हम कभी भी सच नहीं लिख पाएंगे ...
अशोक "अजनबी"
सभी मित्रों व पाठकों का आभार जिन्होंने मेरी रचनाऐं पढ़ी व समीक्षा की 🙏🙏🙏
रिपोर्ट की समस्या
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