स्त्रियाँ 'अचानक' के लिए अभ्यस्त होती हैं अचानक ही हो जाती हैं बड़ी अचानक एक दिन छूट जाता हैं मनपसंद फ्रॉक अचानक घूरने लगती हैं निगाहें उनकी छाती और नितंब और न जाने क्या क्या चलना-बैठना-खड़े होना ...
अचानक ये ज़िंदगी भी पूरी हो जाती है, आपकी कविता में लड़कियों के पूरे जीवन को कुछ ही लफ्ज़ों में बचपन से लेकर जवानी और उसके साथ जिन मुश्किलों से लड़कियां गुजारती है सब लिख दिया, पड़ोस वाले कुछ भैया भेड़िए की तरह के होते है, दो को मैने सुधरा है, मगर अफसोस एक बात का रहता है, कभी कभी लड़कियां भी, झूठे दिखावटी इंसान पर भरोसा कर नुकसान उठा लेती है , साफ सीधी बात उनको सुनना पसंद नहीं होता,।
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अचानक ये ज़िंदगी भी पूरी हो जाती है, आपकी कविता में लड़कियों के पूरे जीवन को कुछ ही लफ्ज़ों में बचपन से लेकर जवानी और उसके साथ जिन मुश्किलों से लड़कियां गुजारती है सब लिख दिया, पड़ोस वाले कुछ भैया भेड़िए की तरह के होते है, दो को मैने सुधरा है, मगर अफसोस एक बात का रहता है, कभी कभी लड़कियां भी, झूठे दिखावटी इंसान पर भरोसा कर नुकसान उठा लेती है , साफ सीधी बात उनको सुनना पसंद नहीं होता,।
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