अब्र बन कोई न आया देर तक धूप का तन्हा था साया देर तक दम मिरा उस दम निकलने को हुआ दूरियों ने जब सताया देर तक आँख मूँदे थे कहाँ सोये थे हम याद का पैकर जब आया देर तक आप से कुछ कह नहीं पाए मगर ख़ुद को तन्हा ही रुलाया देर तक बात कुछ थी चाँद के मन में ज़रूर देखकर जो मुस्कुराया देर तक बाग़ में कलियों के चेहरे देखकर एक भँवरा गुनगुनाया देर तक ...
रिपोर्ट की समस्या
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