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अबूझ ममता

4.9
141

' म ' से मां, मां से ममता, ममता से जग में प्राण, पर पूछे अब धरती सिसक- सिसक, क्या मां का दिल पाषाण। क्यों पड़ी सड़क पर बिलख रही, ये प्यारी नन्ही सी जान। मैं मां की प्यारी,नन्ही सी कली हूं। दादी ...

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लेखक के बारे में

कभी कभी अपने मन के भावों को शब्दों में पिरोने की कोशिश कर लेती हूं।🙂

समीक्षा
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  • author
    DEEPESH
    08 అక్టోబరు 2019
    content जबरजस्त है, "अनु" भाव मे पकड़ अच्छी है..तुम्हारी लेखों में कहानियो, कविताओं में, लेकिन इसमें दो जगह rhyming बदल गया...सिंगल rhyming होता तो और ज्यादा जबरजस्त लगता...ख़ैर अभी शुरुआत है, धीरे-धीरे पकड़ आजायेगा... जारी रखो लिखना✒️😊🕊️🕊️ और जब भी लिखो 2-4 बार चेक कर लेना कई बार ऐसे शब्द उपयोग कर लेते है, जो जरूरत ही नही होता न rhyming बनता ना ही बदलता बस लंबाई कविता की बढ़ जाती। जैसे:- "आजाद भावों के पंख तेरे, जंजीर-ऐ-रश्मो से "अनु", देख ये आगाज,कह रही है हवा, मैं तेरी हमनवा बनू।" अब इसमें दूसरी पंक्ति को ऐसे भी लिख सकते है..और अर्थ और ryhming भी नही बदलेगा.... ""देख ये आगाज, कहे हवा मैं हमनवा बनू।""
  • author
    Chahat
    06 మార్చి 2021
    लाडो चली गई..., आपकी ये रचना अंतर्मन को रुला गयी... जननी को अपनी ही संतान को जन्म देने का अधिकार सिर्फ इसलिए नहीं क्योंकि क्योंकि उसके गर्भ में लाडला नहीं लाडली है..., मर्मस्पर्शी सृजन 🌷🙏🌷
  • author
    Gyanendra maddheshia Gyani
    03 జూన్ 2019
    शब्द कम पड़ रहे इस अनोखी कृति के लिए.....वाक़ई में एक शानदार कविता जो मानव समाज की सच्चाइयों से हमें रूबरू करा रही है.....👌👌👌👌👍
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    DEEPESH
    08 అక్టోబరు 2019
    content जबरजस्त है, "अनु" भाव मे पकड़ अच्छी है..तुम्हारी लेखों में कहानियो, कविताओं में, लेकिन इसमें दो जगह rhyming बदल गया...सिंगल rhyming होता तो और ज्यादा जबरजस्त लगता...ख़ैर अभी शुरुआत है, धीरे-धीरे पकड़ आजायेगा... जारी रखो लिखना✒️😊🕊️🕊️ और जब भी लिखो 2-4 बार चेक कर लेना कई बार ऐसे शब्द उपयोग कर लेते है, जो जरूरत ही नही होता न rhyming बनता ना ही बदलता बस लंबाई कविता की बढ़ जाती। जैसे:- "आजाद भावों के पंख तेरे, जंजीर-ऐ-रश्मो से "अनु", देख ये आगाज,कह रही है हवा, मैं तेरी हमनवा बनू।" अब इसमें दूसरी पंक्ति को ऐसे भी लिख सकते है..और अर्थ और ryhming भी नही बदलेगा.... ""देख ये आगाज, कहे हवा मैं हमनवा बनू।""
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    Chahat
    06 మార్చి 2021
    लाडो चली गई..., आपकी ये रचना अंतर्मन को रुला गयी... जननी को अपनी ही संतान को जन्म देने का अधिकार सिर्फ इसलिए नहीं क्योंकि क्योंकि उसके गर्भ में लाडला नहीं लाडली है..., मर्मस्पर्शी सृजन 🌷🙏🌷
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    Gyanendra maddheshia Gyani
    03 జూన్ 2019
    शब्द कम पड़ रहे इस अनोखी कृति के लिए.....वाक़ई में एक शानदार कविता जो मानव समाज की सच्चाइयों से हमें रूबरू करा रही है.....👌👌👌👌👍