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"अभिमान"

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सूरज बनकर आकाश में ऐसे चमकना खुद तपना,जलना पर ना करना अभिमान फल से लदे वृक्ष की तरह बनाकर पहचान जीवन में झुककर करना सबका सम्मान पर्वत की ऊंचाई हो , सागर की गहराई हो आये ना अभिमान कभी, मन में ...

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लेखक के बारे में
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SMT. VIMLESH SHRIVASTAVA

मैं प्राचार्य हायर सेकेंडरी स्कूल शिक्षा से सेवानिवृत हूँ ।कविता एवम् कहानी लेखन में रुचि है ।

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    UMA SHARMA "अर्तिका"
    05 ఏప్రిల్ 2022
    बिल्कुल सही कहा आपने माटी का तन 1 दिन माटी में ही मिल जाएगा जो मिला यहां पर यही रह जाएगा,,,, बहुत सुंदर पंक्तियां लिखी है सुन्दर प्रस्तुति 👌👌👌👌👌
  • author
    श्वेता विजय mishra
    03 ఏప్రిల్ 2022
    बहुत बहुत शानदार संदेश देती अति सुंदर रचना बहुत खूब 🙏🙏👍👍👍👍
  • author
    Soma Shukla
    04 ఏప్రిల్ 2022
    👌👌🌹🌹🙏बहुत सुन्दर सार्थक और प्रेरक रचना , , , ,
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  • कुल टिप्पणी
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    UMA SHARMA "अर्तिका"
    05 ఏప్రిల్ 2022
    बिल्कुल सही कहा आपने माटी का तन 1 दिन माटी में ही मिल जाएगा जो मिला यहां पर यही रह जाएगा,,,, बहुत सुंदर पंक्तियां लिखी है सुन्दर प्रस्तुति 👌👌👌👌👌
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    श्वेता विजय mishra
    03 ఏప్రిల్ 2022
    बहुत बहुत शानदार संदेश देती अति सुंदर रचना बहुत खूब 🙏🙏👍👍👍👍
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    Soma Shukla
    04 ఏప్రిల్ 2022
    👌👌🌹🌹🙏बहुत सुन्दर सार्थक और प्रेरक रचना , , , ,