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आज़ाद मन

4.4
37167

पिछले दिनों सुमीता और रमण अपने स्टूडेंट के आमंत्रण पर शादी की एक रस्म में शामिल हुए। वहाँ पहुँचते ही वे सब उनके आगत पर बहुत खुश हुए। उन दोनों के लिए उस परिवार से मिला आदर और अपनापन कभी नहीं बिसारा जा सकने वाला भावपूर्ण उपहार था। । मिलने मिलाने के दौर के बाद खाना खाने के उनके अनुरोध के साथ उन्होंने फूड स्टॉल की तरफ़ रूख किया। सुमीता जैसे ही मुड़ी, उसे उसकी एक सहेली मिल गई ... खुशी में सुमीता के मुँह से अनायास ही निकला समीरा ! तुम, यहाँ, वाउ ! इट्स अ प्लीजेंट सरप्राइज! और वह भी सुमीता को पाकर ...

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समीक्षा
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  • author
    ANUPMA TIWARI
    04 માર્ચ 2019
    यहाँ अगर होम मेकर बोल दिया जाए। तो ऐसे मुँह बनाते है जैसे किसी की मौत की खबर सुन ली हो। सीधा जवाब होता है फिर। काम ही क्या है इसके पास। ऐसा क्यों।
  • author
    Mayra
    13 ઓગસ્ટ 2020
    👏👏👏👏👏👏 वास्तव में एक महान रचना। मैंने अब तक जो भी रचनाएँ पढ़ी वो केवल संघर्ष, मजबूरी को दिखती हैं। इस तरह से प्रस्तुत की जाती हैं कि मानसिक थकान होने लगती हैं। परंतु आपकी रकना वाकई में सकारात्मक और प्रेरणादायी है।
  • author
    Alka Sanghi
    03 ડીસેમ્બર 2017
    Ek nayi soch
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    ANUPMA TIWARI
    04 માર્ચ 2019
    यहाँ अगर होम मेकर बोल दिया जाए। तो ऐसे मुँह बनाते है जैसे किसी की मौत की खबर सुन ली हो। सीधा जवाब होता है फिर। काम ही क्या है इसके पास। ऐसा क्यों।
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    Mayra
    13 ઓગસ્ટ 2020
    👏👏👏👏👏👏 वास्तव में एक महान रचना। मैंने अब तक जो भी रचनाएँ पढ़ी वो केवल संघर्ष, मजबूरी को दिखती हैं। इस तरह से प्रस्तुत की जाती हैं कि मानसिक थकान होने लगती हैं। परंतु आपकी रकना वाकई में सकारात्मक और प्रेरणादायी है।
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    Alka Sanghi
    03 ડીસેમ્બર 2017
    Ek nayi soch