आयो फाल्गुन रो मास भक्त करे उल्लास, खेलेंगा बाबा संग भरकर पिचकारी लगवांगा रंग पलाश। आनाकानी ना करियो न सुनेंगा थारी एक भी बात थाने रंगकर, रंग जावंगा थारे ही रंग में, म्हारा सांवलो सरकार । शिल्पा ...
अंतर्मन की आवाज़ को देती हूँ शब्दों का आकार,
मेरी लेखनी में सिमटा है, संवेदनाओं का संसार।
मेरी रचनाएं मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित हैं।
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सारांश
अंतर्मन की आवाज़ को देती हूँ शब्दों का आकार,
मेरी लेखनी में सिमटा है, संवेदनाओं का संसार।
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रिपोर्ट की समस्या
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