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आत्म-संतुष्टि

4.4
7610

आज सुबह से ही बहुत तेज बरसात हो रही थी । फुहारें जैसे जैसे तेज हो रही थीं, मेरे माथे की षिकन भी वैसे वैसे गहराती जा रही थी । आज आॅफिस कैसे पहुंॅचूंगी बस यही एक प्रष्न मन में उमड़ घुमड़ रहा था । छुट्टी ...

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लेखक के बारे में
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मिताली सिंह

M.A. , M.Ed. दिल्ली युनिवेर्सिटी से ।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Nidhi Pathak
    09 ಫೆಬ್ರವರಿ 2017
    very very nice
  • author
    Kapil Singh
    03 ಫೆಬ್ರವರಿ 2017
    अति सुंदर ... विषय बहुत ही मार्मिक है एवम आज की आधुनिक होती जिंदगी में भी हमारे ह्रदय में जो करुणा छुपी है, जिसके लिए हमे समय ही नहीं मिलता, उससे उजागर करती है .... आवश्यकताएँ तो बहुत हैं पर उनको पूरा करने की कोशिश में भी जो अपनी इंसानियत को न भूले वही इंसान है ....
  • author
    Anu Radha
    17 ನವೆಂಬರ್ 2016
    Bahut hi sunder or sanvedansheel kahani.
  • author
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    Nidhi Pathak
    09 ಫೆಬ್ರವರಿ 2017
    very very nice
  • author
    Kapil Singh
    03 ಫೆಬ್ರವರಿ 2017
    अति सुंदर ... विषय बहुत ही मार्मिक है एवम आज की आधुनिक होती जिंदगी में भी हमारे ह्रदय में जो करुणा छुपी है, जिसके लिए हमे समय ही नहीं मिलता, उससे उजागर करती है .... आवश्यकताएँ तो बहुत हैं पर उनको पूरा करने की कोशिश में भी जो अपनी इंसानियत को न भूले वही इंसान है ....
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    Anu Radha
    17 ನವೆಂಬರ್ 2016
    Bahut hi sunder or sanvedansheel kahani.